You're using an outdated version of Internet Explorer.
DOWNLOAD NOWतुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे तक मैं तुम्हें नई बात न लिखूँगा। हमने थोड़े-से खतों में हजारों लाखों बरसों की दौड़ लगा डाली है। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ हम देख आए हैं उस पर तुम जरा गौर करो। हम उस जमाने से चले थे जब जमीन सूरज ही का एक हिस्सा थी, तब वह उससे अलग हो कर धीरे-धीरे ठंडी हो गई। उसके बाद चाँद ने उछाल मारी और जमीन से निकल भागा, मुद्दतों तक यहाँ
तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे तक मैं तुम्हें नई बात न लिखूँगा। हमने थोड़े-से खतों में हजारों लाखों बरसों की दौड़ लगा डाली है। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ हम देख आए हैं उस पर तुम जरा गौर करो। हम उस जमाने से चले थे जब जमीन सूरज ही का एक हिस्सा थी, तब वह उससे अलग हो कर धीरे-धीरे ठंडी हो गई। उसके बाद चाँद ने उछाल मारी और जमीन से निकल भागा, मुद्दतों तक यहाँ कोई जानवर न था। तब लाखों, करोड़ों बरसों में, धीरे-धीरे जानदारों की पैदाइश हुई। दस लाख बरसों की मुद्दत कितनी होती है, इसका तुम्हें कुछ अंदाजा होता है? इतनी बड़ी मुद्दत का अंदाजा करना निहायत मुश्किल है। तुम अभी कुल दस वर्ष की हो और कितनी बड़ी हो गई हो! खासी कुमारी हो गई हो। तुम्हारे लिए सौ वर्ष ही बहुत हैं। फिर कहाँ हजार, और कहाँ लाख जिसमें सौ हजार होते हैं। हमारा छोटा-सा सिर इसका ठीक अंदाजा कर ही नहीं सकता। लेकिन हम अपने आपको बहुत बड़ा समझते हैं और जरा-जरा-सी बातों पर झुँझला उठते हैं, और घबरा जाते हैं। लेकिन दुनिया के इस पुराने इतिहास में इन छोटी-छोटी बातों की हकीकत ही क्या? इतिहास के इन अपार युगों का हाल पढ़ने और उन पर विचार करने से हमारी आँखें खुल जाएँगी और हम छोटी-छोटी बातों से परेशान न होंगे।
जरा उन बेशुमार युगों का खयाल करो जब किसी जानदार का नाम तक न था। फिर उस लंबे जमाने की सोचो जब सिर्फ समुद्र के जंतु ही थे। दुनिया में कहीं आदमी का पता नहीं है। जानवर पैदा होते हैं और लाखों वर्ष तक बेखटके इधर-उधर कुलेलें किया करते हैं। कोई आदमी नहीं है जो उनका शिकार कर सके। और अंत में जब आदमी पैदा भी होता है तो बिल्कुल बित्ता भर का, नन्हा-सा, सब जानवरों से कमज़ोर! धीरे-धीरे हजारों बरसों में वह अधिक मजबूत और होशियार हो जाता है, यहाँ तक कि वह दुनिया के जानवरों का मालिक हो जाता है। और दूसरे जानवर उसके ताबेदार और गुलाम हो जाते हैं और उसके इशारे पर चलने लगते हैं।
तब सभ्यता के फैलने का जमाना आता है। हम इसकी शुरुआत देख चुके हैं। अब हम यह देखने को कोशिश करेंगे कि आगे चल कर उसकी क्या हालत हुई। अब हमें लाखों बरसों का जिक्र नहीं करना है। पिछले खतों में हम तीन-चार हजार वर्ष पहले के जमाने तक पहुँच गए थे। लेकिन इधार के तीन-चार हजार बरसों का हाल हमें उधार के लाखों बरसों से अधिक मालूम है। आदमी के इतिहास की तरक्की दरअसल इन्हीं तीन हजार बरसों में हुई है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम इतिहास के बारे में बहुत कुछ पढ़ोगी। मैं इनके बारे में कुछ थोड़ा-सा लिखूँगा जिससे तुम्हें कुछ खयाल हो जाए कि इस छोटी-सी दुनिया में आदमी पर क्या-क्या गुजरी।
मैंने अरसे से तुम्हें कोई पत्र नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी जिसका हम अपने खतों में चर्चा कर रहे हैं। मैंने तुम्हें पुरानी मछलियों की हड्डियों के चित्र पोस्टकार्ड भेजे थे जिससे तुम्हें खयाल हो जाय कि ये 'फॉसिल' कैसे होते हैं। मसूरी में जब तुमसे मेरी मुलाकात हुई थी तो मैंने तुम्हें दूसरे किस्म के 'फॉसिल' की तस्वीरें दिखाई थीं।
पुराने
मैंने अरसे से तुम्हें कोई पत्र नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी जिसका हम अपने खतों में चर्चा कर रहे हैं। मैंने तुम्हें पुरानी मछलियों की हड्डियों के चित्र पोस्टकार्ड भेजे थे जिससे तुम्हें खयाल हो जाय कि ये 'फॉसिल' कैसे होते हैं। मसूरी में जब तुमसे मेरी मुलाकात हुई थी तो मैंने तुम्हें दूसरे किस्म के 'फॉसिल' की तस्वीरें दिखाई थीं।
पुराने रेंगनेवाले जानवरों की हड्डियों को खास तौर से याद रखना। सांप, छिपकली, मगर और कछुवे वगैरह जो आज भी मौजूद हैं, रेंगनेवाले जानवर हैं। पुराने जमाने के रेंगनेवाले जानवर भी इसी जाति के थे पर कद में बहुत बड़े थे और उनकी शक्ल में भी फर्क था। तुम्हें उन देव के-से जंतुओं की याद होगी जिन्हें हमने साउथ केन्सिगटन के अजायबघर में देखा था। उनमें से एक तीस या चालीस फुट लंबा था। एक किस्म का मेढक भी था जो आदमी से बड़ा था और एक कछुवा भी उतना ही बड़ा था। उस जमाने में बड़े भारी-भारी चमगादड़ उड़ा करते थे और एक जानवर जिसे इगुआनोडान कहते हैं, खड़ा होने पर वह एक छोटे-से पेड़ के बराबर होता था।
तुमने खान से निकले हुए पौधे भी पत्थर की सूरत में देखे थे। चट्टानों में 'फर्न' और पत्तियों और ताड़ों के खूबसूरत निशान थे।
रेंगनेवाले जानवरों के पैदा होने के बहुत दिन बाद वे जानवर पैदा हुए जो अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं। अधिकतर जानवर जिन्हें हम देखते हैं, और हम लोग भी, इसी जाति में हैं। पुराने जमाने के दूध पिलानेवाले जानवर हमारे आजकल के बाज जानवरों से बहुत मिलते थे उनका कद अक्सर बहुत बड़ा होता था लेकिन रेंगनेवाले जानवरों के बराबर नहीं। बड़े-बड़े दाँतोंवाले हाथी और बड़े डील-डौल के भालू भी होते थे।
तुमने आदमी की हड्डियाँ भी देखी थीं। इन हड्डियों और खोपड़ियों के देखने में भला क्या मजा आता। इससे अधिक दिलचस्प वे चकमक के औजार थे जिन्हें शुरू जमाने के लोग काम में लाते थे।
मैंने तुम्हें मिस्र के मक़बरों और ममियों की तस्वीरें भी दिखाई थीं। तुम्हें याद होगा इनमें से बाज बहुत खूबसूरत थीं। लकड़ी की ताबूतों पर लोगों की बड़ी-बड़ी कहानियाँ लिखी हुई थीं। थीब्स के मिस्र मक़बरों की दीवारों की तस्वीरें बहुत ही खूबसूरत थीं।
तुमने मिस्र के थीब्स नामी शहर में महलों और मन्दिरों के खंडहरों की तस्वीरें देखी थीं। कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें और कितने भारी-भारी खंभे थे। थीब्स के पास ही मेमन की बहुत बड़ी मूर्ति है। ऊपरी मिस्र में कार्नक के पुराने मंदिरों और इमारतों की तस्वीरें भी थीं। इन खंडहरों से भी तुम्हें कुछ अंदाजा हो सकता है कि मिस्र के पुराने आदमी मेमारी के काम में कितने होशियार थे। अगर उन्हें इंजीनियरी का अच्छा ज्ञान न होता तो वे ये मंदिर और महल कभी न बना सकते।
हमने सरसरी तौर पर पीछे लिखी हुई बातों पर एक नजर डाल ली। इसके बाद के पत्र में हम और आगे चलेंगे।
अब तक हमने बहुत ही पुराने जमाने का हाल लिखा है। अब हम यह देखना चाहते हैं कि आदमी ने कैसे तरक्की की और क्या-क्या काम किए। उस पुराने जमाने को इतिहास के पहले का जमाना कहते हैं, क्योंकि उस जमाने का हमारे पास कोई सच्चा इतिहास नहीं है। हमें बहुत कुछ अंदाज से काम लेना पड़ता है। अब हम इतिहास के शुरू में पहुँच गए हैं।
पहले हम यह देखेंगे कि हिंदुस्तान में कौन-कौन-सी बातें हुईं। हम पहले ही
अब तक हमने बहुत ही पुराने जमाने का हाल लिखा है। अब हम यह देखना चाहते हैं कि आदमी ने कैसे तरक्की की और क्या-क्या काम किए। उस पुराने जमाने को इतिहास के पहले का जमाना कहते हैं, क्योंकि उस जमाने का हमारे पास कोई सच्चा इतिहास नहीं है। हमें बहुत कुछ अंदाज से काम लेना पड़ता है। अब हम इतिहास के शुरू में पहुँच गए हैं।
पहले हम यह देखेंगे कि हिंदुस्तान में कौन-कौन-सी बातें हुईं। हम पहले ही देख चुके हैं कि बहुत पुराने जमाने में मिस्र की तरह हिंदुस्तान में भी सभ्यता फैली हुई थी। रोजगार होता था और यहाँ के जहाज हिंदुस्तानी चीजों को मिस्र, मेसोपोटैमिया और दूसरे देशों को ले जाते थे। उस जमाने में हिंदुस्तान के रहनेवाले द्रविड़ कहलाते थे। ये वही लोग हैं जिनकी संतान आजकल दक्षिणी हिंदुस्तान में मद्रास के आसपास रहती हैं।
उन द्रविड़ों पर आर्यों ने उत्तर से आ कर हमला किया, उस जमाने में मध्य एशिया में बेशुमार आर्य रहते होंगे। मगर वहाँ सब का गुजारा न हो सकता था इसलिए वे दूसरे मुल्कों में फैल गए। बहुत-से ईरान चले गए और बहुत-से यूनान तक और उससे भी बहुत पश्चिम तक निकल गए। हिंदुस्तान में भी उनके दल के दल कश्मीर के पहाड़ों को पार करके आए। आर्य एक मजबूत लड़नेवाली जाति थी और उसने द्रविड़ों को भगा दिया। आर्यों के रेले पर रेले उत्तर-पश्चिम से हिंदुस्तान में आए होंगे। पहले द्रविड़ों ने उन्हें रोका लेकिन जब उनकी तादाद बढ़ती ही गई तो वे द्रविड़ों के रोके न रुक सके। बहुत दिनों तक आर्य लोग उत्तर में सिर्फ अफगानिस्तान और पंजाब में रहे। तब वे और आगे बढ़े और उस हिस्से में आए जो अब संयुक्त प्रांत कहलाता है, जहाँ हम रहते हैं। वे इसी तरह बढ़ते-बढ़ते मध्य भारत के विंध्य पहाड़ तक चले गए। उस जमाने में इन पहाड़ों को पार करना मुश्किल था क्योंकि वहाँ घने जंगल थे। इसलिए एक मुद्दत तक आर्य लोग विंध्य पहाड़ के उत्तर तक ही रहे। बहुतों ने तो पहाड़ियों को पार कर लिया और दक्षिण में चले गए। लेकिन उनके झुंड के झुंड न जा सके इसलिए दक्षिण द्रविड़ों का ही देश बना रहा।
आर्यों के हिंदुस्तान में आने का हाल बहुत दिलचस्प है। पुरानी संस्कृत किताबों में तुम्हें उनका बहुत-सा हाल मिलेगा। उनमें से बाज पुस्तकें जैसे वेद उसी जमाने में लिखी गयी होंगी। ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है और उससे तुम्हें कुछ अंदाजा हो सकता है कि उस वक्त आर्य लोग हिंदुस्तान के किस हिस्से में आबाद थे। दूसरे वेदों से और पुराणों और दूसरी संस्कृत की पुरानी किताबों से मालूम होता है कि आर्य फैलते चले जा रहे थे। शायद इन पुरानी किताबों के बारे में तुम्हारी जानकारी बहुत कम है। जब तुम बड़ी होगी तो तुम्हें और बातें मालूम होंगी। लेकिन अब भी तुम्हें बहुत-सी कथाएँ मालूम हैं जो पुराणों से ली गई हैं। इसके बहुत दिनों बाद रामायण लिखी गई और उसके बाद महाभारत।
इन किताबों से हमें मालूम होता है कि जब आर्य लोग सिर्फ पंजाब और अफगानिस्तान में रहते थे, तो वे इस हिस्से को ब्रह्मावर्त कहते थे। अफगानिस्तान को उस समय गांधार कहते थे। तुम्हें महाभारत में गांधारी का नाम याद है। उसका यह नाम इसलिए पड़ा कि वह गांधार या अफगानिस्तान की रहनेवाली थी। अफगानिस्तान अब हिंदुस्तान से अलग है लेकिन उस जमाने में दोनों एक थे।
अब आर्य लोग और नीचे, गंगा और जमुना के मैदानों में आए, तो उन्होंने उत्तरी हिंदुस्तान का नाम आर्यावर्त रखा।
पुराने जमाने की दूसरी जातियों की तरह वे भी नदियों के किनारे पर बसे शहरों में ही आबाद हुए। काशी या बनारस, प्रयाग और बहुत से दूसरे शहर नदियों के ही किनारे हैं।
आर्यों को हिंदुस्तान आए बहुत जमाना हो गया। सबके सब तो एक साथ आए नहीं होंगे, उनकी फौजों पर फौजें, जाति पर जाति और कुटुम्ब पर कुटुम्ब सैकड़ों वर्ष तक आते रहे होंगे। सोचो कि वे किस तरह लंबे काफिलों में सफर करते हुए, गृहस्थी की सब चीजें गाड़ियों और जानवरों पर लादे हुए आए होंगे। वे आजकल के यात्रियों की तरह नहीं आए। वे फिर लौट कर जाने के लिए नहीं आए थे। वे यहाँ रहने के लिए या लड़ने और मर जाने
आर्यों को हिंदुस्तान आए बहुत जमाना हो गया। सबके सब तो एक साथ आए नहीं होंगे, उनकी फौजों पर फौजें, जाति पर जाति और कुटुम्ब पर कुटुम्ब सैकड़ों वर्ष तक आते रहे होंगे। सोचो कि वे किस तरह लंबे काफिलों में सफर करते हुए, गृहस्थी की सब चीजें गाड़ियों और जानवरों पर लादे हुए आए होंगे। वे आजकल के यात्रियों की तरह नहीं आए। वे फिर लौट कर जाने के लिए नहीं आए थे। वे यहाँ रहने के लिए या लड़ने और मर जाने के लिए आए थे। उनमें से अधिकतर तो उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियों को पार करके आए; लेकिन शायद कुछ लोग समुद्र से ईरान की खाड़ी होते हुए आए और अपने छोटे-छोटे जहाजों में सिंधू नदी तक चले गए।
ये आर्य कैसे थे? हमें उनके बारे में उनकी लिखी हुई किताबों से बहुत-सी बातें मालूम होती हैं। उनमें से कुछ पुस्तकें, जैसे वेद, शायद दुनिया की सबसे पुरानी किताबों में से हैं। ऐसा मालूम होता है कि शुरू में वे लिखी नहीं गई थीं। उन्हें लोग जबानी याद करके दूसरों को सुनाते थे। वे ऐसी सुंदर संस्कृत में लिखी हुई हैं कि उनके गाने में मजा आता है। जिस आदमी का गला अच्छा हो और वह संस्कृत भी जानता हो उसके मुँह से वेदों का पाठ सुनने में अब भी आनंद आता है। हिंदू वेदों को बहुत पवित्र समझते हैं। लेकिन 'वेद' शब्द का मतलब क्या? इसका मतलब है 'ज्ञान' और वेदों में वह सब ज्ञान जमा कर दिया गया है जो उस जमाने के ऋषियों और मुनियों ने हासिल किया था। उस जमाने में रेलगाड़ियाँ, तार और सिनेमा न थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस जमाने के आदमी मूर्ख थे। कुछ लोगों का तो यह खयाल है कि पुराने जमाने में लोग जितने अक्लमंद होते थे, उतने अब नहीं होते। लेकिन चाहे वे अधिक अक्लमंद रहे हों या न रहे हों उन्होंने बड़े मार्के की पुस्तकें लिखीं जो आज भी बड़े आदर से देखी जाती हैं। इसी से मालूम होता है पुराने जमाने के लोग कितने बड़े थे।
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि वेद पहले लिखे न गए थे। लोग उन्हें याद कर लिया करते थे और इस तरह वे एक पुश्त से दूसरी पुश्त तक पहुँचते गए। उस जमाने में लोगों की याद रखने की ताकत भी बहुत अच्छी रही होगी। हममें से अब कितने आदमी ऐसे हैं जो पूरी पुस्तकें याद कर सकते हैं?
जिस जमाने में वेद लिखे गए उसे वेद का जमाना कहते हैं। पहला वेद ऋग्वेद हैं। इसमें वे भजन और गीत हैं जो पुराने आर्य गाया करते थे। वे लोग बहुत खुशमिजाज रहे होंगे, रूखे और उदास नहीं। बल्कि जोश और हौसले से भरे हुए। अपनी तरंग में वे अच्छे-अच्छे गीत बनाते थे और अपने देवताओं के सामने गाते थे।
उन्हें अपनी जाति और अपने आप पर बड़ा गरूर था। ''आर्य'' शब्द के माने हैं ''शरीफ आदमी'' या ''ऊँचे दरजे का आदमी''। और उन्हें आजाद रहना बहुत पसंद था। वे आजकल की हिंदुस्तानी संतानों की तरह न थे जिनमें हिम्मत का नाम नहीं और न अपनी आजादी के खो जाने का रंज है। पुराने जमाने के आर्य मौत को गुलामी या बेइज्जती से अच्छा समझते थे।
वे लड़ाई के फन में बहुत होशियार थे। और कुछ-कुछ विज्ञान भी जानते थे। मगर खेती-बाड़ी का ज्ञान उन्हें बहुत अच्छा था। खेती की कद्र करना उनके लिए स्वाभाविक बात थी। और इसलिए जिन चीजों से खेती को फायदा होता था उनकी भी वे बहुत कद्र करते थे। बड़ी-बड़ी नदियों से उन्हें पानी मिलता था इसलिए वे उन्हें प्यार करते थे और उन्हें अपना दोस्त और उपकारी समझते थे। गाय और बैल से भी उन्हें अपनी खेती में और रोजमर्रा के कामों में बड़ी मदद मिलती थी, क्योंकि गाय दूध देती थी जिसे वे बड़े शौक से पीते थे। इसलिए वे इन जानवरों की बहुत हिफाजत करते थे और उनकी तारीफ के गीत गाते थे। उसके बहुत दिनों के बाद लोग यह तो भूल गए कि गाय की इतनी हिफाजत क्यों की जाती थी और उसकी पूजा करने लगे। भला सोचो तो इस पूजा से किसका क्या फायदा था। आर्यों को अपनी जाति का बड़ा घमंड था और इसलिए वे हिंदुस्तान की दूसरी जातियों में मिल-जुल जाने से भयते थे। इसलिए उन्होंने ऐसे कायदे और कानून बनाए कि मिलावट न होने पाए। इसी वजह से आर्यों को दूसरी जातियों में विवाह करना मना था। बहुत दिनों के बाद इसी ने आजकल की जातियाँ पैदा कर दीं। अब तो यह रिवाज बिल्कुल ढोंग हो गया है। कुछ लोग दूसरों के साथ खाने या उन्हें छूने से भी भयते हैं। मगर यह बड़ी अच्छी बात है कि यह रिवाज कम होता जा रहा है।
वेदों के जमानें के बाद काव्यों का जमाना आया। इसका यह नाम इसलिए पड़ा कि इसी जमानें में दो महाकाव्य, रामायण और महाभारत लिखे गए, जिनका हाल तुमने पढ़ा है। महाकाव्य पद्य की उस बड़ी पुस्तक को कहते हैं, जिसमें वीरों की कथा बयान की गई हो।
काव्यों के जमाने में आर्य लोग उत्तरी हिंदुस्तान से विंध्य पहाड़ तक फैल गए थे। जैसा मैं तुमसे पहले कह चुका हूँ इस मुल्क को आर्यावर्त कहते थे। जिस सूबे
वेदों के जमानें के बाद काव्यों का जमाना आया। इसका यह नाम इसलिए पड़ा कि इसी जमानें में दो महाकाव्य, रामायण और महाभारत लिखे गए, जिनका हाल तुमने पढ़ा है। महाकाव्य पद्य की उस बड़ी पुस्तक को कहते हैं, जिसमें वीरों की कथा बयान की गई हो।
काव्यों के जमाने में आर्य लोग उत्तरी हिंदुस्तान से विंध्य पहाड़ तक फैल गए थे। जैसा मैं तुमसे पहले कह चुका हूँ इस मुल्क को आर्यावर्त कहते थे। जिस सूबे को आज हम 'संयुक्त प्रदेश कहते हैं वह उस जमाने में मध्य प्रदेश कहलाता था, जिसका मतलब है बीच का मुल्क। बंगाल को बंग कहते थे।
यहाँ एक बड़े मजे की बात लिखता हूँ जिसे जान कर तुम खुश होगी। अगर तुम हिंदुस्तान के नक्शे पर निगाह डालो और हिमालय और विंध्य पर्वत के बीच के हिस्से को देखो, जहाँ आर्यावर्त रहा होगा तो तुम्हें वह दूज के चाँद के आकार का मालूम होगा। इसीलिए आर्यावर्त को इंदु देश कहते थे। इंदु चाँद को कहते हैं।
आर्यों को दूज के चाँद से बहुत प्रेम था। वे इस शक्ल की सभी चीजों को पवित्र समझते थे। उनके कई शहर इसी शक्ल के थे जैसे बनारस। मालूम नहीं तुमने खयाल किया है या नहीं, कि इलाहाबाद में गंगा भी दूज के चाँद की-सी हो गई है।
यह तो तुम जानती ही हो कि रामायण में राम और सीता की कथा और लंका के राजा रावण के साथ उनकी लड़ाई का हाल बयान किया गया है। पहले इस कथा को वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा था। बाद को वही कथा बहुत-सी दूसरी भाषाओं में लिखी गई। इनमें तुलसीदास का हिंदी में लिखा हुआ रामचरितमानस सबसे प्रसिद्ध है।
रामायण पढ़ने से मालूम होता है कि दक्षिणी हिंदुस्तान के बंदरों ने रामचन्द्र की मदद की थी और हनुमान उनका बहादुर सरदार था। मुमकिन है कि रामायण की कथा आर्यों और दक्षिण के आदमियों की लड़ाई की कथा हो, जिनके राजा का नाम रावण रहा हो। रामायण में बहुत-सी सुंदर कथाएँ हैं; लेकिन यहाँ मैं उनका जिक्र न करूँगा, तुमको खुद उन कथाओं को पढ़ना चाहिए।
महाभारत इसके बहुत दिनों बाद लिखा गया। यह रामायण से बहुत बड़ा ग्रंथ है। यह आर्यों और दक्षिण के द्रविड़ों की लड़ाई की कथा नहीं; बल्कि आर्यों के आपस की लड़ाई की कथा है। लेकिन इस लड़ाई को छोड़ दो, तो भी यह बड़े ऊँचे दरजे की पुस्तक है जिसके गहरे विचारों और सुंदर कथाओं को पढ़ कर आदमी दंग रह जाता है। सबसे बढ़ कर हम सबको इसलिए इससे प्रेम है कि इसमें वह अमूल्य ग्रन्थ रत्न है जिसे भगवद्गीता कहते हैं।
ये पुस्तकें कई हजार वर्ष पहले लिखी गई थीं। जिन लोगों ने ऐसी-ऐसी पुस्तकें लिखीं वे जरूर बहुत बड़े आदमी थे। इतने दिन गुजर जाने पर भी ये पुस्तकें अब तक जिंदा हैं, लड़के उन्हें पढ़ते हैं और सयाने उनसे उपदेश लेते हैं।
पिछले पत्र में मैंने तुम्हें बताया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से भयता था और खयाल करता था कि उस पर मुसीबतें लानेवाले देवता हैं जो क्रोधी हैं और इर्ष्या करते है। उसे ये फर्जी देवता जंगल, पहाड़, नदी, बादल सभी जगह नजर आते थे। देवता को वह दयालु और नेक नहीं समझता था, उसके खयाल में वह बहुत ही क्रोधी था और बात-बात पर झल्ला उठता था। और चूँकि वे उसके गुस्से से भयते थे इसलिए वे उसे भेंट
पिछले पत्र में मैंने तुम्हें बताया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से भयता था और खयाल करता था कि उस पर मुसीबतें लानेवाले देवता हैं जो क्रोधी हैं और इर्ष्या करते है। उसे ये फर्जी देवता जंगल, पहाड़, नदी, बादल सभी जगह नजर आते थे। देवता को वह दयालु और नेक नहीं समझता था, उसके खयाल में वह बहुत ही क्रोधी था और बात-बात पर झल्ला उठता था। और चूँकि वे उसके गुस्से से भयते थे इसलिए वे उसे भेंट देकर, विशेषकर खाना पहुँचा कर, हर तरह की रिश्वत देने की कोशिश करते रहते थे। जब कोई बड़ी आफत आ जाती थी, जैसे भूचाल या बाढ़ या महामारी जिसमें बहुत-से आदमी मर जाते थे, तो वे लोग भय जाते थे और सोचते थे कि देवता नाराज हैं। उन्हें खुश करने के लिए वे पुरुषों-स्त्रियों का बलिदान करते, यहाँ तक कि अपने ही बच्चों को मार कर देवताओं को चढ़ा देते। यही बड़ी भयानक बात मालूम होती है लेकिन डरा हुआ आदमी जो कुछ कर बैठे, थोड़ा है।
इसी तरह धर्म शुरू हुआ होगा। इसलिए धर्म पहले भय के रूप में आया और जो बात भय से की जाए बुरी है। तुम्हें मालूम है कि धर्म हमें बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया के मज़हबों का हाल पढ़ोगी और तुम्हें मालूम होगा कि धर्म के नाम पर क्या-क्या अच्छी और बुरी बातें की गई हैं। यहाँ हमें सिर्फ यह देखना है कि धर्म का खयाल कैसे पैदा हुआ और क्योंकर बढ़ा। लेकिन चाहे वह जिस तरह बढ़ा हो, हम आज भी लोगों को धर्म के नाम पर एक दूसरे से लड़ते और सिर फोड़ते देखते हैं। बहुत-से आदमियों के लिए धर्म आज भी वैसी ही डरावनी चीज है। वह अपना वक्त फर्जी देवताओं को खुश करने के लिए मंदिरों में पूजा, चढ़ाने और जानवरों की कुर्बानी करने में खर्च करते हैं।
इससे मालूम होता है कि शुरू में आदमी को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। उसे रोज का खाना तलाश करना पड़ता था, नहीं तो भूखों मर जाता। उन दिनों कोई आलसी आदमी जिंदा न रह सकता था। कोई ऐसा भी नहीं कर सकता था कि एक ही दिन बहुत-सा खाना जमा कर ले और बहुत दिनों तक आराम से पड़ा रहे।
जब जातियाँ (फिरके) बन गईं, तो आदमी को कुछ सुविधा हो गई। एक जाति के सब आदमी मिल कर उससे अधिक खाना जमा कर लेते थे जितना कि वे अलग-अलग कर सकते थे। तुम जानती हो कि मिल कर काम करना या सहयोग, ऐसे बहुत से काम करने में मदद देता है जो हम अकेले नहीं कर सकते। एक या दो आदमी कोई भारी बोझ नहीं उठा सकते लेकिन कई आदमी मिल कर आसानी से उठा ले जा सकते हैं। दूसरी बड़ी तरक्की जो उस जमाने में हुई वह खेती थी। तुम्हें यह सुन कर ताज्जुब होगा कि खेती का काम पहले कुछ चींटियों ने शुरू किया। मेरा यह मतलब नहीं है कि चींटियाँ बीज बोतीं, हल चलातीं या खेती काटती हैं। मगर वे कुछ इसी तरह की बातें करती हैं। अगर उन्हें ऐसी झाड़ी मिलती है, जिसके बीज वे खाती हों, तो वे बड़ी होशियारी से उसके आस-पास की घास निकाल डालती हैं। इससे वह वृक्ष अधिक फलता-फूलता है और बढ़ता है। शायद किसी जमाने में आदमियों ने भी यही किया होगा जो चींटियाँ करती हैं। तब उन्हें यह समझ क्या थी कि खेती क्या चीज है। इसके जानने में उन्हें एक जमाना गुजर गया होगा और तब उन्हें मालूम हुआ होगा कि बीज कैसे बोया जाता है।
खेती शुरू हो जाने पर खाना मिलना बहुत आसान हो गया। आदमी को खाने के लिए सारे दिन शिकार नही करना पड़ता था। उसकी जिंदगी पहले से अधिक आराम से कटने लगी। इसी जमाने में एक और बड़ी तब्दीली पैदा हुई। खेती के पहले हर आदमी शिकारी था और शिकार ही उसका एक काम था। औरतें शायद बच्चों की देख-रेख करती होंगी और फल बटोरती होंगी। लेकिन जब खेती शुरू हो गई तो तरह-तरह के काम निकल आए। खेतों में भी काम करना पड़ता था, शिकार करना, गाय-बैलों की देख-भाल करना भी जरूरी था। औरतें शायद गायों की देखभाल करतीं थीं और उनको दुहती थीं। कुछ आदमी एक तरह का काम करने लगे, कुछ दूसरी तरह का।
आज तुम्हें दुनिया में हर एक आदमी एक खास किस्म का काम करता हुआ दिखाई देता है। कोई डाक्टर है, कोई सड़कों और पुलों को बनानेवाला इंजीनियर, कोई बढ़ई, कोई लुहार, कोई घरों का बनानेवाला, कोई मोची या दरजी वगैरह। हर एक आदमी का अपना अलग पेशा है और दूसरे पेशों के बारे में वह कुछ नहीं जानता। इसे काम का बँटना कहते हैं। अगर काई आदमी एक ही काम करे तो उसे बहुत अच्छी तरह करेगा। बहुत-से काम वह इतनी अच्छी तरह पूरे नहीं कर सकता, दुनिया में आज-कल इसी तरह काम बँटा हुआ है।
जब खेती शुरू हुई तो पुरानी जातियों में इसी तरह धीरे-धीरे काम का बँटना शुरू हुआ।
इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट,
1, अकबर रोड,
नई दिल्ली- 110 011.
I AM COURAGE
सर्वाधिकार © 2016 इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट | गोपनीयता नीति | नियम और शर्तें | डिजिटल लॉ एंड केनेथ साची एंड साची द्वारा साइट