भारत के प्रधानमंत्री के रूप में
- इंदिरा गांधी 1955 में कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की एक सदस्या बनीं।
- 1958 में, उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के एक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।
- वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की राष्ट्रीय एकता परिषद की अध्यक्ष, और अखिल भारतीय युवा कांग्रेस, 1956 की और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं।
- वे 1959 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और 1960 तक सेवा की और उसके बाद फिर से जनवरी 1978 से अध्यक्ष बनीं।
- वे 1964 से 1966 तक केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं।
- 19 जनवरी 1966 को, जब आगामी प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा रहा था, खबर की प्रतीक्षा में भारी भीड़ इमारत के बाहर एकत्र थी। तब पार्टी प्रमुख, सत्य नारायण सिन्हा, सामने आए। बताया जाता है कि भीड़ ने पूछा, "लड़का है या लड़की?" और सिन्हा ने जवाब दिया," लड़की " इससे भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई। इंदिरा ने देसाई के 169 मतों के मुकाबले 355 मतों के साथ जीत हासिल की थी। जब उन्हें इसका पता चला तो उन्होंने बड़ी विनम्रतापूर्वक एक नए अंदाज में स्वयं को 'देश की सेविका" या राष्ट्र का सेवक कहा। जब देश के नेता के रूप में उनके चुनाव के महत्व के बारे में एक पत्रकार ने पूछा, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने कहा, "शायद यह एक प्रकार की निरंतरता - नीति की निरंतरता और शायद व्यक्तित्व की निरंतरता सुनिश्चित करता है।"
- पत्रकार सुदीप्त कविराज ने बाद में लिखा है कि "उनके सत्ता में विलय के समय में इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी योग्यता...यह तथ्य था कि वह किसी भी नीति से इस प्रकार से जुड़ी नहीं थी कि किसी भी ऐसे समूह को ठेस पहुंचा सके जिसने नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी की बहुकेंद्रिक संरचना पर प्रभुत्व जमा लिया था।"
- भारत के प्रधानमंत्री के रूप में एक महिला के चुनाव ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। अमेरिका की टाइम पत्रिका के कवर पृष्ठ पर 'व्यथित भारत एक महिला के हाथ में' शीर्षक के अंतर्गत इंदिरा दिखाई दीं। अंग्रेजी पत्रकार जॉन ग्रिग ने गार्जियन में लिखा था, "शायद ही इतिहास में किसी भी देश में किसी औरत ने इतने भारी बोझ की जिम्मेदारी ग्रहण की हो और निश्चित रूप से भारत जैसे महत्व के किसी देश ने पहले कभी एक औरत के हाथों में इतनी शक्ति को सौंपा हो।" इंदिरा गांधी का चुनाव पश्चिम में बढ़ रहे नारीवादी आंदोलन के समानांतर काल में हुआ था, फिर भी इंदिरा कभी स्वयं को एक नारीवादी नहीं मानती थीं।
- 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी को भारत की प्रधानमंत्री के रूप में नए केंद्रीय मंत्रिमंडल के साथ राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन द्वारा शपथ ग्रहण करवाई गई।
- इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री तथा जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के पश्चात देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनीं। वर्षों का प्रशिक्षण, जिम्मेदारियों का वहन, कार्य यात्राएं, और अपने पिता की सहायता करने की परिणति, उन्हें भारत सरकार का नेतृत्व करने तक ले गयी।
- एक सहज स्नेह और वास्तविक प्रशंसा देश भर में अभिव्यक्त हुई। लोगों को लगा कि वे अग्नि परीक्षा पर खरी उतरीं हैं और सम्मान की सही हकदार हैं।
- उन्होंने 1966 से 1977 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की और तत्पश्चात 1980 से लेकर 1984 में उनकी हत्या किये जाने तक, उन्होंने सेवा की। साथ साथ, वे मार्च 1967 से सितंबर 1977 तक परमाणु ऊर्जा मंत्री भी थीं।
- उन्होंने 5 सितंबर, 1967 से 14 फरवरी, 1969 तक विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला।
- उन्होंने जून 1970 से नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मंत्रालय का नेतृत्व किया।
- जनवरी 1980 से वे योजना आयोग की अध्यक्ष थीं।
- उन्होंने फिर से 14 जनवरी, 1980 से प्रधानमंत्री कार्यालय की अध्यक्षता की।
- जवाहर लाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी सबसे अधिक लंबे समय तक सेवा करने वालीं भारत की दूसरी प्रधानमंत्री थीं।
आत्म निर्भरता की ओर कदम
"पहले के दशकों में, वंचित लोगों की मांग स्वतंत्रता प्राप्ति थी। आज यह आत्मनिर्भरता होनी चाहिए....."- इंदिरा गांधी, 20 मार्च, 1972, नई दिल्ली।
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की उपलब्धियां उत्कृष्ट रहीं।
- प्रधानमंत्री के रूप में, इंदिरा ने आर्थिक योजना में नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाया। नेहरू की तरह, वह खाद्यान्न, रक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे अहम क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध थीं। उनके द्वारा अपनाए उपायों से तेल संकट जैसे प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के प्रति भारतीय अर्थव्यवस्था को संरक्षण मिला। उन्होंने सत्तर और अस्सी के दशक में, मुद्रास्फीति को एक हद तक नीचे लाने की दिशा में काम किया। कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन इस अवधि के दौरान काफी तेज कर दिया गया था।
- जवाहर लाल नेहरू की तरह इंदिरा ने निधि की वृद्धि के माध्यम से देश के भीतर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और संस्थानों को मजबूत बनाकर वैज्ञानिक अनुसंधान के विकास की एक कल्पनाशील नीति अपनाई। अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया कि भारत, वैज्ञानिक मानव शक्ति और तकनीकी जानकारी के संबंध में विकासशील देशों में एक प्रमुख स्थान रखता है।
- सत्तर के दशक के प्रारंभ में किए गए भूमि सुधार कार्यों के दूसरे चरण ने कुछ ही हाथों में देश की जमीन पर नियंत्रण को रोकने की प्रक्रिया के द्वारा ग्रामीण भारत का परिदृश्य ही बदल दिया। इस कार्यक्रम ने भूमिहीन परिवारों के लाखों लोगों को भूमि प्रदान की।
- उन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के अनुसंधान के क्षेत्र में विशेष रुचि ली।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण
"... बैंकिंग प्रणाली जैसी संस्था, जो लाखों लोगों के जीवन को छूती है और छूनी चाहिए, को एक बृहत सामाजिक उद्देश्य से प्रेरित किया जाना चाहिए और जो राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और उद्देश्यों को आगे बढाए"- इंदिरा गांधी, ऑल इंडिया रेडियो, जुलाई 1969 को प्रसारित।
- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत सरकार ने एक अध्यादेश ['बैंकिंग कंपनियों (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अध्यादेश, 1969'] 19 जुलाई, 1969 की आधी रात से प्रभावी, जारी करके 14 सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। यह एक बहुत बड़ा आर्थिक मील का पत्थर था। चौदह बैंकों, जो भारत की जमा राशि का सत्तर प्रतिशत नियंत्रित करते थे, को राष्ट्रीयकृत किया गया। छह और बैंकों को 1980 में राष्ट्रीयकृत किया गया। 1955 में इंपीरियल बैंक को राष्ट्रीयकृत किया गया था, इसे भारतीय स्टेट बैंक बनाया गया।
- बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने क्रेडिट को कृषि और लघु तथा मध्यम उद्योगों की ओर प्रशस्त किया। बैंकों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों (कृषि और लघु और मध्यम उद्योगों) के लिए ऋण का चालीस प्रतिशत तक आरक्षित करना पड़ा।
- राष्ट्रीयकरण अभियान ने न केवल घरेलू बचत की वृद्धि में मदद की, बल्कि अनौपचारिक क्षेत्र, छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों और कृषि के क्षेत्र में भी काफी निवेश प्रदान किया। इसने क्षेत्रीय विकास और भारत के औद्योगिक और कृषि आधार का विस्तार करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- जयप्रकाश नारायण, जो सत्तर के दशक में गांधी के प्रमुख विरोधी के रूप में प्रसिद्ध थे, उन्होंने भी बैंक राष्ट्रीयकरण के लिए उनकी प्रशंसा की।
1971 के युद्ध के बाद तेल कंपनियों को राष्ट्रीयकृत किया गया
- पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध के दौरान, विदेशी स्वामित्व वाली निजी तेल कंपनियों ने भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के लिए ईंधन की आपूर्ति करने के लिए मना कर दिया था। जवाब में, श्रीमती गांधी ने 1973 में तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया। राष्ट्रीयकरण के बाद तेल प्रमुख जैसे इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (एचपीसीएल) और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) जैसी बड़ी कंपनियों को तेल के एक न्यूनतम अंश को सेना के लिए, उनकी आवश्यकताओं के समय आपूर्ति करने के उद्देश्य से संरक्षित रखना था।
- 1974 और 1976 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ईएसएसओ और बर्मा शैल को राष्ट्रीयकृत किया (कैल्टेक्स और आईबीपी को भी राष्ट्रीयकृत किया गया)। उन्होंने तेल की आपूर्ति और कीमतों की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए तेल समन्वय समिति का गठन किया। उन्होंने पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें निर्धारित करने के लिए 'प्रशासित मूल्य निर्धारण तंत्र' पेश किया।
हरित क्रांति
भारत में हरित क्रांति, साठ के दशक के मध्य और उत्तरोतर काल में, इंदिरा गांधी के परिवर्तनकारी कार्यक्रमों के महत्वपूर्ण भागों में से एक था।
- नेहरू के अंतिम कार्यकाल के बाद के वर्षों में तथा शास्त्री काल के अंतराल के दौरान कृषि सुधार को भूमि उपयोग और स्वामित्व के संस्थागत और संरचनात्मक सुधार से, कईं प्रकार के तकनीकी विकास की ओर स्थानांतरित किया गया।
- इनमें से सबसे महत्वपूर्ण गेहूं और चावल के बीज की संकर, उच्च उपज किस्मों की शुरूआत थी। ऐसी फसलों के उत्पादन में, खासकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में, नाटकीय रूप से वृद्धि हुई।
- इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति को एक प्रमुख सरकारी प्राथमिकता बनाया और नए संकर बीजों की शुरुआत के साथ-साथ राज्य की सब्सिडी, बिजली, पानी, खाद और किसानों को ऋण के प्रावधान की शुरुआत की। कृषि आय पर कर नहीं था।
- परिणाम यह हुआ कि भारत खाद्य में आत्म-निर्भर हो गया - अमेरिकी राष्ट्रपति जॉनसन की त्रुटियुक्त और शर्तबद्ध खाद्य सहायता के बाद इंदिरा का हार्दिक उद्देश्य।
- कृषि में सरकारी निवेश भी तेजी से बढ़ गया। कृषि के लिए उपलब्ध कराया गया संस्थागत वित्त 1968 और 1973 के बीच दोगुना हो गया। उसके साथ-साथ सार्वजनिक निवेश, संस्थागत ऋण, लाभकारी मूल्य और कम कीमत पर नई तकनीक की उपलब्धता भी प्राप्त कराई गई। इससे किसानों द्वारा निजी निवेश की लाभप्रदता में वृद्धि हुई और इसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में कुल सकल पूंजी निर्माण तेज गति से हुआ। इस नई रणनीति के परिणाम 1967-68 और 1970-71 के बीच के समय की एक छोटी अवधि के भीतर देखे गए थे जब खाद्यान्न उत्पादन में सैंतीस प्रतिशत की वृद्धि हुई और उसके बाद खाद्य वस्तुओं का शुद्ध आयात 1966 में 10.3 मिलियन टन से घटकर 1970 में 3.6 मिलियन रह गया। दरअसल, इसी अवधि में भोजन की उपलब्धता 73.5 मिलियन टन से बढ़कर 99.5 मिलियन हुई। अस्सी के दशक तक, 30 लाख टन से अधिक के खाद्य भंडार के साथ, न केवल भारत आत्मनिर्भर था, बल्कि अपने ऋण के भुगतान के लिए खाद्य निर्यात करने लगा या खाद्य अल्पता वाले देशों को ऋण भी देने लगा।
सिंडिकेट, कांग्रेस के प्रांतीय क्षत्रपों के समूह, को उनकी चुनौती
- 1969 में भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को पहली बार प्रमुख विभाजन का सामना करना पड़ा। पुराने संरक्षकों का नेतृत्व करते हुए पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा ने "व्यक्तित्व के एक पंथ को बढ़ावा देने के लिए" प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया। "सिंडीकेट" (जैसा कि वरिष्ठ सदस्यों को कहा जाता था), इस तथ्य को मान नहीं पाए कि जिसे वे "गूंगी गुड़िया" कहकर संबोधित कर रहे हैं उनका अपना भी एक विवेक है। इंदिरा ने राष्ट्रपति के पद के लिए एन संजीव रेड्डी के नाम का प्रस्ताव करने के बाद, कांग्रेसियों से "अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार वोट" करने का आवाहन करके इस विभाजन की पुष्टि कर दी। विद्रोही कांग्रेस के उम्मीदवार वी.वी. गिरि जीते।
- कांग्रेस के विद्रोही गुटों - पुराने संरक्षकगण सिंडीकेट और इंदिरा गांधी के अनुयायियों के बीच कई वार्ता और बैठकों का आयोजन किया गया। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। 28 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने इंदिरा पर कांग्रेस की प्रजातांत्रिक तरीके से कार्य करने में बाधक एक 'व्यक्तित्व पंथ' सृजित करने का आरोप लगाते हुए एक खुला पत्र लिखा।
- 1 नवंबर को नई दिल्ली के दो अलग-अलग स्थानों; अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय जंतर मंतर रोड और इंदिरा गांधी के घर 1, सफदरजंग रोड पर एक ही समय में कांग्रेस कार्य समिति की दो बैठकें हुई। प्रत्येक बैठक में टीम के सदस्यों ने भाग लिया।
- एक सप्ताह बाद, इंदिरा ने 'कांग्रेसियों को पत्र' जारी किया जिसमें उन्होंने अतार्किक रूप से जोर देकर कहा: "... जो कुछ भी हम देख रहे हैं ... मात्र व्यक्तित्वों का एक टकराव नहीं है और निश्चित रूप से यह सत्ता के लिए भी एक लड़ाई नहीं है। यह संसदीय और संगठन भागों के बीच एक संघर्ष मात्र नहीं है। यह दो दृष्टिकोण और व्यवहार के बीच के संबंध में कांग्रेस के उद्देश्यों और तरीकों के बीच संघर्ष है जिसके आधार पर कांग्रेस में कार्य होना चाहिए। यह उन लोगों के बीच टकराव है जो बदलाव के लिए और पूरे आंतरिक लोकतंत्र के लिए तथा समाजवाद के लिए कार्य कर रहे हैं और संगठन में बहस चलाना चाहते हैं, दूसरी तरफ वे लोग हैं जो यथास्थिति पर पुष्टिकरण चाहते हैं और कांग्रेस के अंदर पूरी बहस नहीं चाहते हैं।"
- 12 नवंबर को, सिंडिकेट ने एक न्यायिक जांच का आयोजन किया। इंदिरा पर उनकी अनुपस्थिति में उनके विरुद्ध कार्रवाई की और उन्हें अनुशासनहीनता तथा पार्टी नेतृत्व की अवज्ञा करने का दोषी पाया गया। अगले दिन, कांग्रेस अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने घोषणा की कि इंदिरा को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है।
- इंदिरा ने कैबिनेट की एक बैठक की और (कुछ अपवादों के साथ) सबने उनके प्रति अपनी वफादारी का वचन दिया। उन्होंने एक बयान भी जारी किया: "यह लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का मुट्ठीभर पुरुषों का दंभ भरा रवैया है। क्या हमें उनके सामने (पार्टी के आकाओं के समक्ष) समर्पण कर देना चाहिए या इन अलोकतांत्रिक और फासिस्ट व्यक्तियों को संगठन से साफ कर देना चाहिए?
- कांग्रेस के बहुमत पर किसका अधिकार होना चाहिए इस पर तीव्र पैरवी की गई। इंदिरा कुल 297 कांग्रेस सांसदों के समर्थन से जीतीं, जिनमें से 220 लोकसभा से थे। इंदिरा कांग्रेस ने अपने दल का नाम कांग्रेस (आर) अपना लिया - अभियाचकों और सिंडिकेट गुट के संगठन के लिए कांग्रेस (ओ) स्वीकार किया गया (हालांकि आमतौर पर कांग्रेस (आर) को सत्तारूढ़ कांग्रेस और कांग्रेस (ओ) को पूर्व कांग्रेस माना जाता था)।
भारत का परमाणु कार्य्रकम
- भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम का प्रारंभ 1944 में किया जब होमी जे भाभा ने टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान की स्थापना की। भौतिक विज्ञानी राजा रमन्ना ने परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने परमाणु हथियारों पर वैज्ञानिक अनुसंधान का विस्तार और पर्यवेक्षण किया और वैज्ञानिकों की छोटी सी टीम के पहले निर्देशन अधिकारी थे जिसने देखरेख की और परीक्षण किए।
- भारत की आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू ने, होमी भाभा की अध्यक्षता में एक परमाणु कार्यक्रम के विकास को अधिकृत किया। 1948 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम में शांतिपूर्ण विकास पर जोर दिया गया। भारत महत्वपूर्ण रूप से परमाणु अप्रसार संधि के विकास में शामिल था, लेकिन अंत में इस पर हस्ताक्षर नहीं करने का विकल्प चुना।
- "... हमें इस परमाणु ऊर्जा को युद्ध से अलग विकसित करना होगा - वास्तव में मुझे लगता है कि हमें शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए इसे इस्तेमाल करने के उद्देश्य हेतु विकसित करना होगा। ... बेशक, यदि एक राष्ट्र के रूप में अन्य प्रयोजनों के लिए उपयोग करने के लिए मजबूर हों, संभवतः उस समय कोई भी पवित्र भावना इसके उपयोग के लिए रोक नहीं सकेगी "- जवाहरलाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
- भारत ने परमाणु हथियारों के बारे में उभयवृत्ति भावनाओं को जारी रखा और भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 तक इसके उत्पादन को कम प्राथमिकता दी | दिसंबर 1971 में, रिचर्ड निक्सन ने भारत को भयभीत करने के एक प्रयास स्वरूप, बंगाल की खाड़ी में, यूएसएस एंटरप्राइज (CVN-65) के नेतृत्व में, एक युद्ध वाहक समूह भेजा। सोवियत संघ ने व्लादिवोस्तोक से परमाणु मिसाइलों से लैस एक पनडुब्बी को अमेरिका टास्क फोर्स का पीछा करने के लिए भेजकर जवाब दिया। सोवियत की प्रतिक्रिया ने इंदिरा गांधी को परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों के निवारक मूल्य और महत्व का प्रमाण दिया। भारत ने उस संधि को, जिसने पाकिस्तान को अलग-अलग राजनीतिक संस्थाओं में विभाजित कर दिया था, स्वीकार कर पाकिस्तान पर सैन्य और राजनीतिक बढ़त हासिल की।
- वर्ष 1967 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं और परमाणु कार्यक्रम पर नए उत्साह के साथ काम शुरू हुआ। होमी सेठना, एक रासायनिक इंजीनियर ने हथियार ग्रेड के प्लूटोनियम के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और रमन्ना ने पूरे परमाणु उपकरण का प्रारूप बनाया और निर्माण किया। संवेदनशीलता की वजह से पहली परमाणु बम परियोजना में पचहत्तर से अधिक वैज्ञानिकों ने काम नहीं किया। परमाणु हथियार कार्यक्रम अब प्लूटोनियम के बजाय यूरेनियम के उत्पादन की दिशा में निर्देशित किया गया था।
- 7 सितंबर, 1972 को जब इंदिरा बांग्लादेश युद्ध के कारण अपनी लोकप्रियता के चरम पर थीं, उन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) को एक परमाणु उपकरण का निर्माण करने और परीक्षण के लिए तैयार करने के लिए अधिकृत किया। हालांकि भारतीय सेना पूरी तरह से परमाणु परीक्षण में शामिल नहीं की गई थी, सेना के सर्वोच्च कमान को पूरी तरह से परीक्षण की तैयारियों के बारे में सूचित किया गया था। भारतीय राजनीतिक नेतृत्व की सतर्क निगरानी में भारतीय सेना द्वारा सिविलियन वैज्ञानिकों की सहायता से तैयारियां की गयीं।
- उपकरण को औपचारिक रूप से 'शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोटक' कहा गया था, लेकिन इसका अक्सर 'मुस्कुराते बुद्ध' के रूप में उल्लेख किया जाता था। उपकरण का 18 मई, 1974 को बुद्ध जयंती पर विस्फोट किया गया था (गौतम बुद्ध के जन्मदिन पर)। इंदिरा ने 'मुस्कुराते बुद्ध' के परीक्षण की तैयारी के सभी पहलुओं पर जबर्दस्त नियंत्रण बनाए रखा।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
- इंदिरा प्रौद्योगिकी उन्नयन के माध्यम से हमारी अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए काफी गहराई से प्रतिबद्ध थीं। जवाहर लाल नेहरू की तरह, उन्होंने भी विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और संस्थानों को सुदृढ़ करके देश के भीतर वैज्ञानिक अनुसंधान के विकास की एक कल्पनाशील नीति अपनाई। इसमें कोई शक नहीं है कि हमारे संसाधनों की उत्पादकता विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपलब्धियों के बिना बहुत कम होती। इंदिरा को पता था कि एक तेजी से बदलती दुनिया में भारत तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों को शिथिल करने का जोखिम नहीं उठा सकता। अब यह व्यापक रूप से स्वीकृत है कि भारत वैज्ञानिक मानव-शक्ति और तकनीकी जानकारी के क्षेत्र में विकासशील देशों में प्रमुख स्थान रखता है।
- उन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के अनुसंधान के क्षेत्र में विशेष रुचि ली। उन्होंने टेलीविजन नेटवर्क, जिसने सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का एक प्रमुख साधन बनने का संकेत दिया, की पहुंच के माध्यम से उपयोगी जानकारी और ज्ञान के प्रसार के साथ, देश में एक संचार क्रांति प्रारंभ की।
- इंदिरा गांधी का कार्यकाल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में (क) स्वयं और (ख) लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की वांछनीयता की दृढ़ प्रतिबद्धता से चिह्नित किया गया था।
- भारतीय संदर्भ में आत्मनिर्भरता को, प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता के रूप में नहीं बल्कि i) आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विकास करने की, (ii) आयात की गई आवश्यक प्रौद्योगिकियों को अनुकूलित और अवशोषित करने की क्षमता के रूप में समझा जाना चाहिए। जापान जैसे अन्य देशों के अनुभव से पता चलता है कि किसी भी आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्रभावशाली रूप से स्थापित करने के लिए दीर्घ अवधि तक सतत रूप से कार्य करने की आवश्यकता होती है। सत्ता में इंदिरा गांधी का प्रवास निश्चित रूप से काफी लंबा रहा था अतः कार्रवाइयों के संबंध में परिणाम का उचित मूल्यांकन किया जा सकता है।
- आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की प्राप्ति में लगे किसी भी राजनीतिक नेतृत्व की चुनौती सही प्राथमिकताओं की स्थापना करने और उपयुक्त नीति के साधन और संस्थाओं को बनाने के कार्य में निहित है। आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त पोषण की कमी कभी समस्या नहीं रही। इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश का विकास विकासशील देशों के मानकों की दृष्टि में काफी प्रभावशाली रहा है। भारत में, बाजार मैकेनिज्म ने प्रौद्योगिकी के लिए संसाधनों के आवंटन में एक बहुत ही सीमित भूमिका निभाई है। दूसरी ओर, राज्य (जिनमें इंदिरा गांधी मुख्य पदाधिकारी थीं) ने प्रकृति, दर और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश की मात्रा का निर्धारण करने में एक बहुत सक्रिय और बड़ी भूमिका निभाई।
- इंदिरा गांधी की सरकार ने प्रौद्योगिकी के लिए आयात प्रतिस्थापन रणनीति अपनाई। घरेलू अनुसंधान और विकास गतिविधियों की रक्षा के प्रति सक्रियता की मंशा रही। एक परिणाम के रूप में, भारतीय उद्योग ने आयातित प्रौद्योगिकी का मूल्यांकन और अन्पैकेजिंग करने के क्षेत्र में प्रगति की है। इससे देश में सौदेबाजी की ताकत में सुधार हुआ है और यह दुनिया के अन्य देशों के लिए एक प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर रहा है।
- इंदिरा ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रभावित करने वाले कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों में पहल की। उन्होंने अनुसंधान और विकास कार्यों में निधि निवेश में वृद्धि के द्वारा, वैज्ञानिकों और टेक्नोक्रेट को उन्नत करने के द्वारा तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी योजना संस्थानों के निर्माण के द्वारा राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया है।
--- संदर्भ: इंडिया दी इयर्स ऑफ़ इंदिरा गांधी, योगेंद्र कुमार मलिक और धीरेंद्र कुमार वाजपेयी। ई जे ब्रिल
भारत का अंतरिक्ष मिशन
- 1968 में इंदिरा गांधी ने अनुसंधान के लिए थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्च स्टेशन संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किया। इसरो का ही 1969 में स्वतंत्रता दिवस पर गठन किया गया था और इसे अंतरिक्ष विभाग के अधीन लाया गया था। 1979 में, इसे प्रमुख प्रक्षेपण स्थल श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश, जहां यह अब है, में ले जाया गया।
- सोवियत संघ को काफी निकटता से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ शामिल किया गया था। इसरो के लिए एक बड़ा मील का पत्थर 1975 में स्थापित हुआ जब सोवियत संघ ने अपने प्रक्षेपण स्थल, कस्पुस्तिन यार से भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह, आर्यभट्ट को प्रक्षेपित किया। आर्यभट्ट नाम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा दिया गया था, इसके लिए तीन नामों का सुझाव दिया गया। आर्यभट्ट नाम शीर्ष पर था। इसके बाद मैत्री और जवाहर नाम थे। इंदिरा ने आर्यभट्ट चुना। आर्यभट्ट के बाद पृथ्वी अवलोकन के लिए भास्कर -1, प्रायोगिक उपग्रह को 7 जून, 1979 को प्रक्षेपित किया गया था।
- रूस निकटता से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ जुड़ा रहा। अंतरिक्ष में भारत का पहला व्यक्ति, राकेश शर्मा 1984 में सोवियत अंतरिक्ष मिशन का प्रथम भारतीय सदस्य था। एक प्रसिद्ध बातचीत में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि भारत अंतरिक्ष से कैसा दिखाई देता है, उन्होंने जवाब दिया, "सारे जहां से अच्छा"।
बीस सूत्री कार्यक्रम
बीस सूत्री कार्यक्रम 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा शुरू किया गया था और बाद में 1982 और 1986 में फिर से इसका पुनर्गठन किया गया।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक रेडियो प्रसारण में, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और समाजवादी झुकाव वाले एक नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करने हेतु उपायों की घोषणा की। इन घोषणाओं में - आयकर की छूट की सीमा को 6000 रूपए से बढ़ाकर 8000 रूपए करना, तस्करों की स्वामित्व वाली सम्पत्तियों को जब्त करना, खाली जमीन के स्वामित्व और कब्जे की हदबंदी करना और अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण - शामिल थीं। भूमि हदबंदी कानून को सख्ती से लागू किया गया और अतिरिक्त भूमि ग्रामीण गरीबों के बीच वितरित की गयी। बीस सूत्री कार्यक्रम में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नीचे लाना, भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों और कारीगरों से कर्ज की वसूली पर रोक हेतु कानून लाना, सरकारी खर्च में कठोरता को बढ़ावा देना, बंधुआ मजदूरी पर कारवाई, ग्रामीण ऋणग्रस्तता को समाप्त करना आदि कदम शामिल थे।
उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम के बीस सूत्रों को सावधानी से बनाया और चुना गया।
बीस सूत्री कार्यक्रम में शामिल थे :
1. ग्रामीण गरीबी पर हमला
2. वर्षा आधारित कृषि के लिए रणनीति
3. सिंचाई के पानी का बेहतर उपयोग
4. बड़ी फसलें
5. भूमि सुधार का प्रवर्तन
6. ग्रामीण श्रमिकों के लिए विशेष कार्यक्रम
7. स्वच्छ पीने का पानी
8. सभी के लिए स्वास्थ्य
9. दो बच्चे का आदर्श
10. शिक्षा में विस्तार
11. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए न्याय
12. महिलाओं के लिए समानता
13. महिलाओं के लिए नए अवसर
14. लोगों के लिए आवास
15. मलिन बस्तियों के लिए सुधार
16. वानिकी के लिए नई रणनीति
17. पर्यावरण संरक्षण
18. उपभोक्ता की समस्याएँ
19. गांवों के लिए ऊर्जा
20. एक जिम्मेदार प्रशासन
1977 में चुनाव करने का निर्णय
- संजय ने इंदिरा को फ़रवरी 1976 में और फिर से नवंबर 1976 में आम चुनावों को स्थगित करने के लिए समझाया। यह विलंबता जनवरी 1977 तक रही जब इंदिरा ने संजय की इच्छा के खिलाफ आम चुनाव की घोषणा कर दी।
- 18 जनवरी, 1977 को इंदिरा की इस घोषणा से राष्ट्र भौंचक्का रह गया कि आम चुनाव आयोजित किये जाएंगे - ये चुनाव पूर्व घोषित नवंबर में नहीं होंगे बल्कि मात्र दो महीने के समय में आयोजित किए जाएंगे। "हर चुनाव विश्वास का एक कर्म है", उन्होंने अपने घोषणा प्रसारण में कहा, "सार्वजनिक जीवन की भ्रम की स्थिति को साफ करने का यह एक अवसर है। इसलिए हम लोगों की शक्ति की पुष्टि करने के संकल्प के साथ चुनाव की ओर बढ़ें।"
- राजनीतिक और व्यक्तिगत रूप से यह वह काल है जब इंदिरा गांधी के जीवन का ढलान प्रारंभ हुआ। वह चुनाव हार गईं और तब न कोई उनकी अन्य आय थी और न ही रहने के लिए घर था। दिलचस्प बात यह है, वह सदैव राजनीतिक कथा के केंद्र में रहीं। इंदिरा के प्रति नकारात्मकता, असमान बंटे हुए जनता दल और संबंधित दलों के एकीकरण का एकमात्र कारण था। वे और उनका परिवार राजनीतिक बदले की भावना का शिकार हुए और सर्वोच्च क्रम की निगरानी में रहे।
1980 से 1984
- जनवरी 1980 के आम चुनाव के लिए इंदिरा ने सड़क पर (और हवा में) बासठ दिन बिताये, जिसमें 40,000 मील की दूरी तय की और हर रोज़ बीस बैठकों को संबोधित किया। पूरे देश में अनुमानित नब्बे लाख लोगों - या हर चार भारतीय मतदाताओं में से एक ने इंदिरा गांधी के अंतिम और सबसे कठिन अभियान के दौरान उनको देखा और सुना।
- इंदिरा उत्तर प्रदेश के अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली और आंध्र प्रदेश के एक नए निर्वाचन क्षेत्र मेडक के लिए चुनाव में खड़ी थी। उन्होंने एक बड़े अंतर के साथ दोनों चुनावों को जीता। देश भर में उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस ने 542 लोकसभा सीटों में से 351 सीटें हासिल कीं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक, "इट्स इंदिरा ऑल द वे" के साथ इस चुनावी जीत को प्रकाशित किया।
- लेकिन फिर, इंदिरा ने रायबरेली से इस्तीफा देने का फैसला किया। इससे संजय गांधी, जो पड़ोस के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से सांसद चुने गए थे, को उत्तर प्रदेश की देखभाल का मौका मिला। बाद में, उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया।
- उसके बाद उन्हें 14 जनवरी 1980 को चौथी बार प्रधान मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। उसके बाद, वह अपने पुराने घर 1, सफदरजंग रोड पर वापस आ गई।
- 23 जून, 1980 को संजय गांधी की एक घातक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वे कैप्टन सुभाष सक्सेना के साथ हवाई जहाज उड़ा रहे थे, जो दिल्ली फ्लाइंग क्लब में एक प्रशिक्षक थे।
- संजय की मृत्यु के बाद, इंदिरा टूट गई और खुद को अकेली महसूस करने लगी। राजीव गांधी, जो इंडियन एयरलाइंस में एक पायलट थे, उन पर राजनीति में प्रवेश के लिए भारी दबाव था। हमेशा की तरह नेहरू-गांधी परिवार में कर्तव्य की भावना कायम रही।
- 5 मई 1981 को राजीव गांधी ने घोषणा की कि वह संजय के पुराने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से जून में उपचुनाव में खड़े होंगे। राजीव, अमेठी उपचुनाव में दस लाख वोटों के एक चौथाई से अधिक वोटों से जीते। 17 अगस्त 1981 को उन्हें सांसद के रूप में शपथ दिलाई गई।
- उसी दौरान, असम और पंजाब में सांप्रदायिक दंगे बढ़ रहे थे।
- 1966 में पंजाब के निर्माण के बाद भूमि, नदियों के जल वितरण और राजधानी चंडीगढ़, जिसे कि पंजाब ने हरियाणा के साथ साझा किया, से संबंधित कुछ मुद्दे अनसुलझे रहे और ये सिखों की शिकायतों का एक स्रोत रहा। 1973 में, सिख पार्टी, अकाली दल ने आनंदपुर साहिब की एक बैठक में औपचारिक रूप से अपनी मांगों को व्यक्त किया जिसे 'आनंदपुर साहिब संकल्प' के रूप में जाना जाने लगा। सिख चंडीगढ़ पर राज्य की राजधानी के रूप में एकमात्र अधिकार, हिंदू पंजाबी बोलने वाले क्षेत्रों को पंजाब में बनाए रखना और राज्य में कृषि के लिए जरूरी नदियों के पानी पर नियंत्रण चाहते थे।
- पंजाब के बहुसंख्य सिख अधिक मुखर हो गए और उनका राजनीतिक दल, अकाली दल कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक चुनौती के रूप में आ खड़ा हुआ। तत्पश्चात, 1977 में, अकाली दल ने चुनाव में कांग्रेस को हराया।
- इसी दौरान, बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी, जिनमें से ज्यादातर मुसलमान थे, असम राज्य में बस गए थे जिसके फलस्वरूप असमिया लोगों के लिए अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक होने का ख़तरा पैदा हो गया था।
- राज्य में एक छात्र संगठन, अखिल-आसाम विद्यार्थी संघ (आल आसाम स्टूडेंट्स यूनियन), सक्रिय हो गया और इसने बंगाली विरोधी प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। जब अप्रैल 1980 में अशांति गंभीर हो गई, तो असम को 'अशांत क्षेत्र' घोषित किया गया। कानून व्यवस्था टूट गई और तेल पाइपलाइनों, जोकि भारत के एक तिहाई तेल की आपूर्ति करती थी, को सुरक्षित करने के लिए अर्धसैनिक बलों को भेजना पड़ा।
- इस समय मूल जनजातियाँ भी असमियों की उच्च जाति के वर्चस्व के खिलाफ खड़ी हो गई और मांग की कि उनके आदिवासी क्षेत्रों में से 'अनधिकृत रहने वालों' को बाहर फेंक दिया जाए।
- यह समस्या इंदिरा की अनुपस्थिति में बढ़ती गई क्योंकि वे 1981 में उच्च श्रेणी के विदेशी दौरों में व्यस्त थीं।
- मई में, वे स्विट्जरलैंड, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात गईं। अगस्त में, वे अपने परिवार के साथ केन्या गईं। इसके पश्चात सितंबर के अंत और अक्टूबर के प्रारंभ में किए एक लंबे दौरे में जकार्ता, फिजी, टोंगा, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस शामिल थे। बाकी अक्टूबर में रोमानिया के और मेक्सिको राज्य के कैनकन में होने वाले प्रमुखों के उत्तर-दक्षिण शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दौरे किए गए। इसका मतलब था कि इंदिरा 1981 की गर्मियों और शरद ऋतु के अधिकतर समय भारत से दूर थीं।
- 1981 के आखिरी महीनों में और 1982 के दौरान, पंजाब जल रहा था। इस मौके पर उन्होंने अकाली दल और भिंडरावाले के लोगों के साथ बातचीत करने की कोशिश की। इन वार्ताओं में से कुछ भी नहीं निकल कर आया और जल्द ही राजीव गांधी ने पंजाब, भिंडरांवाले और अकाली दल से निपटने का पेचीदा और जोखिम भरा कार्य संभाला।
- संसद के 1982 सत्र का प्रारंभ इस घोषणा से हुआ कि विगत दो सालों में देश में 960 हरिजन मारे गए थे। बड़े शहरों में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे थे। सांप्रदायिक परिस्थितियां हरिजनों के इस्लाम या ईसाई धर्म में रूपांतरण की लहर से और अधिक ख़राब हो गई - जोकि "अस्पृश्य" के लिए धर्म परिवर्तन के बाद निरंतर भेदभाव के अपने दुर्भाग्य से बचने का एकमात्र रास्ता था।
- हिंदू उत्साहियों ने मांग की कि सरकार धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाए। परंतु, इंदिरा ने यह समझाते हुए इनकार कर दिया कि यह मांग 'संविधान द्वारा गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता के साथ किस प्रकार से असंगत' है।
- जुलाई 1982 के अंत में, राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ वार्ता के लिए इंदिरा वाशिंगटन गई। इंदिरा की रीगन के साथ 1982 की बातचीत भारत-अमेरिकी संबंधों में सुधार के लिए थी, लेकिन कुछ भी फलदायी होना दूर की बात थी। 1979 में अफगानिस्तान के सोवियत आक्रमण के मद्देनजर, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को हमेशा की तरह समर्थन दिया और अमेरिकी दृष्टि में, भारत अभी भी सोवियत का सहयोगी माना जाता था। वॉशिंगटन में एक संवाददाता सम्मेलन में एक रिपोर्टर ने इंदिरा से पूछा कि भारत 'हमेशा सोवियत संघ की तरफ क्यों झुकता है?' जिस पर उनका जवाब था, "हम किसी भी तरफ झुकते नहीं...सीधे चलते हैं"।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
- फरवरी 1984 में, इंदिरा की सरकार ने पंजाब में अकाली नेताओं के साथ वार्ता का एक और दौर शुरू किया। हालांकि, स्थिति में गतिरोध बना रहा और हिंसा में वृद्धि होती रही ।
- मार्च और अप्रैल 1984 के दौरान, भिंडरावाले के घातक दस्ते ने अस्सी लोगों की हत्या कर दी और एक सौ सात को घायल किया। इसमें प्रमुख हिंदु और कांग्रेस-समर्थक सिख शामिल थे। जिन हिंदुओं ने पंजाब नहीं छोड़ा था अब उन्होंने राज्य से पलायन करना प्रारंभ कर दिया जिनमें व्यापारी, ऋणदाता, दुकानदार और अमीर उद्योगपति शामिल थे। इस समय, राज्य के टेलिफ़ोन एक्सचेंज पर नियंत्रण रखने के लिए, भिंडरावाले ने राज्य प्रशासन और पुलिस में घुसपैठ कर दी थी।
- अकाली दल के नेता, लोंगोवाल - जो अब तक भिंडरावाले के साथ संघर्ष कर रहे थे और स्वर्ण मंदिर के एक अलग हिस्से पर कब्जा कर चुके थे - ने घोषित किया कि वह भारत सरकार से वार्ता के लिए बीच राह में मिलने के लिए तैयार हैं।
- भिंडरावाले, हालांकि, तैयार नहीं था। भिंडरावाले ने समस्त आनंदपुर साहिब संकल्प की मांग की थी - जिसमें जमीन और नदियों के पानी वितरण से संबंधित - मांगों को पूरा किया जाना शामिल था, हालाँकि वह जानता था कि ऐसा नहीं हो सकता।
- अधर में लटके, लोंगोवाल ने घोषणा की कि 3 जून - स्वर्ण मंदिर का निर्माण करने वाले श्री गुरु अर्जुन, के शहीदी दिवस से - अनाज पंजाब से बाहर निकलना बंद हो जाएगा। यह राज्य भारत का ब्रेडबास्केट था! यदि अनाज की आपूर्ति रोक दी गई तो बाकी देशवासी भूखे मरने लगेंगे।
- इस समय पर, स्वर्ण मंदिर पर धावा बोलकर भिंडरावाले और उसके अनुयायियों को वहां से बाहर निकालने की आकस्मिक योजना, अनिवार्यता बन गई।
- राष्ट्र के प्रसारण में 2 जून को, इंदिरा ने कहा, "पंजाब, हमारे मन में सबसे ऊपर है। पूरा देश गहराई से चिंतित है।" उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ के 'पूरे क्षेत्रीय विवाद' को निपटाने, पंजाब के नदी जल के वितरण और हिंदू क्षेत्रों को तय करने के लिए आयोग का गठन किया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि बड़ी समस्या यह नहीं है कि सरकार एक समान समझौते की पेशकश करने में नाकाम रही है, बल्कि यह है कि अकालियों ने भिंडरावाले के सामने समर्पण कर दिया है। वे "मुद्दों के निपटारे में हिंसा और आतंकवाद की अनुमति नहीं दे सकती। जो लोग ऐसे समाज-विरोधी और राष्ट्रीय-विरोधी गतिविधियों में शामिल होते हैं, वे ऐसी गलतफहमी में न रहें।"
- उन्होंने पंजाबियों के सभी वर्गों के लिए एक भावनात्मक अपील की....खून न बहाएँ, बल्कि दिलों में भरी हुई घृणा बाहर बहाएँ'।
- जैसे ही इंदिरा ने यह कहा, भारतीय सेना स्वर्ण मंदिर की ओर बढ़ रही थी। यह 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का आगाज़ था।
- 5 जून को, भारतीय सेना के अधिकारियों ने स्वर्ण मंदिर के अंदर उपस्थित नागरिकों और सशस्त्र चरमपंथियों को क्रमशः खाली करने और आत्मसमर्पण करने को कहा। भिंडरावाले के लोगों में से कोई भी बाहर नहीं निकला, लेकिन 126 अन्य -विशेषज्ञ, तीर्थयात्री और नरम पंथी सिख बाहर आ गए।
- उस रात, भारतीय सेना ने जबरन मंदिर के उस क्षेत्र में प्रवेश किया जहां अकाली नेता छुपे थे न कि भिंडरावाले। छापे के दौरान, भिंडरावाले के लोगों ने गोलीबारी की और कमांडो के लक्ष्य तक पहुँचने से पूर्व ही नब्बे में से आधे से अधिक कमांडो मारे गए या गंभीर रूप से घायल हो गए।
- यह लड़ाई भिंडरावाले की मौत के साथ समाप्त हुई, लेकिन उसके विनाश की लागत बहुत बड़ी थी। इसने, इंदिरा को उनके खुफिया स्रोतों, सेना और उनके सलाहकारों द्वारा दिए गए सभी अनुमानों को पार कर लिया था; यह उनकी कल्पना की तुलना में कहीं बड़ी लागत थी।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार एक भयावह पराजय था। स्वर्ण मंदिर में भेजे गए हजारों सैनिकों में से, लगभग तीन सौ सात सैनिक और आधे से अधिक विशेष बल के कमांडो मारे गए थे। नागरिक मृत्युओं का लगभग एक हजार से अधिक होने का अनुमान है।
- मानव हानि के अलावा, स्वर्ण मंदिर पुस्तकालय - जिसमें सिख गुरुओं द्वारा हाथ से लिखी हुई पांडुलिपियां थीं - आग की लपटों में स्वाहा हो गईं; हरमंदिर साहिब में तीन सौ बुलेट छेद हो गए और अकाल तख्त गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुआ।
- 9 जून को, भारतीय राष्ट्रपति, ज़ैल सिंह ने इंदिरा के अनुरोध पर स्वर्ण मंदिर का दौरा किया। मंदिर के एक टावर में सक्रिय कुछ हताश चरमपंथियों में से एक ने, जिसे सेना बाहर निकालने में सक्षम नहीं हो पाई थी, गोली चलाई जो ज्ञानी ज़ैल सिंह के बगल वाले सुरक्षा कर्मी के कंधे में लगी, गोली अपने लक्ष्य से ज़रा सी चूक गई थी।
- यह एक चेतावनी शॉट था। स्वर्ण मंदिर के ध्वस्त होने, नर संहार तथा मंदिर की पवित्रता भंग होने की पूर्ण स्तरीय जानकारी प्राप्त होने के बाद यह स्पष्ट था ही कि अंततः बदला लिया जाएगा।