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गरीबी हटाओ प्रोग्राम

  • साठ के दशक के अंत में, इस बात का बहुत ज़्यादा अनुभव किया जा रहा था कि आर्थिक नीतियां और शक्ति संरचनाएं केवल सीमित वृद्धि ही ला पाई हैं। और तो और इसके लाभ का समान वितरण भी नहीं था।
  • इंदिरा इन जमीनी वास्तविकताओं से अवगत थीं और इसका यह आशय भी नहीं था कि वे विकास के विपरीत, व्यापक वामपंथी विचारधारा से अलग हो गईं। प्रधान मंत्री के रूप में, वे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाल रही तेज़ी से बढ़ती कीमतों के बारे में चिंतित थीं और उन्हें यह भी पता था कि इस स्थिति ने गरीबों को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है। देश के विभिन्न हिस्सों में कट्टरपंथी नक्सली आंदोलन अपने पैर जमा रहा था। वे वामपंथी विचारधारा से प्रेरित बड़े पैमाने पर भूमि हड़पने के आंदोलनों के निहितार्थ से अवगत थीं।
  • जब 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ तो इंदिरा पार्टी के एक समूह की नेता बन गई और उन्होंने साबित कर दिया कि वे गरीबी से जूझ रहे संघर्षों में वामपंथियों की तुलना में कम सामरिक नहीं हैं। चौथी पंचवर्षीय योजना की तैयारी में, उन्होंने लगातार आबादी के कमजोर वर्गों के लिए विशेष चिंता व्यक्त की। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि उनके सहयोग से, वे गरीबी से प्रभावी रूप से लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उन्होंने अधिक से अधिक उत्साह और उद्यम के साथ विकास के नेहरूवादी मॉडल को अपनाया।
  • इंदिरा के राजनीतिक विरोधियों ने "इंदिरा हटाओ" का नारा बुलंद किया, इंदिरा ने इसे "गरीबी हटाओ" में परिवर्तित कर दिया। इस नारे का काफी व्यापक प्रभाव पड़ा; इंदिरा को अब भारत के उद्धारकर्ता के रूप में देखा जाने लगा था। उनका चुनाव अभियान पहले से कहीं ज्यादा ऊर्जावान था।
  • यह इंदिरा गांधी के 1971 के चुनावी नारे 'गरीबी हटाओ देश बचाओ' की पृष्ठभूमि थी और बाद में उनके बेटे राजीव गांधी ने भी इसका उपयोग किया।
  • नारा और उसके साथ आए प्रस्तावित गरीबी-निर्मूलन कार्यक्रम, जिनका प्रारूप इस प्रकार बनाया गया था कि ये प्रभुत्वशाली ग्रामीण जातियों से बचते हुए सीधे गरीब और वंचित लोगों तक पहुंचे। पहले न बोल पाने वाले गरीबों को आखिरकार राजनीतिक मूल्य और राजनीतिक भार दोनों पर फायदा होगा।
  • 1971 के चुनावों में, उन्होंने गरीबी हटाओ के नारे को लोकप्रिय बना दिया और ग्रामीण भारत के वंचित समूहों के विभिन्न वर्गों तक पहुंचने के लिए इसे एक बिंदु बनाया। पार्टी के अध्यक्ष बनने वाले बाबू जगजीवन राम ने पिछड़े समूहों के प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। उन्होंने कहा, "हिंदू समाज विभिन्न जातियों का एक संघ है... और आज तक सभी सरकारी उपायों और सरकार द्वारा प्रदान किए गए लाभ के फल का आनंद ले रही प्रमुख जातियों को खुद ही उनका समर्पण करना होगा। कुछ क्षेत्रों में हमें प्रमुख प्रभुत्वशाली जातियों और वामपंथी विरोधी के रूप में जाने जाने वालों से चुनौती है। हमें इन सभी चुनौतियों का सामना करना होगा। कांग्रेस विशेष देखभाल के साथ कमजोर वर्ग के लोगों, खासकर एस सी, एस टी और ओ बी सी वर्गों के शैक्षिक, रोजगार और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।"
  • प्रारंभिक सत्तर के दशक में भारत में वास्तविक सामाजिक लोकतांत्रिक संभावनाओं की उम्मीदें थीं। हालांकि इन प्रयोगों ने अक्सर अपेक्षित परिणाम नहीं दिए, क्योंकि इंदिरा को प्रमुख वर्ग के हितों से बहुत अधिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इस संबंध में, उन्होंने कहा था कि "कोई राज्य के नेताओं को एक हद तक धमका सकता है उससे ज़्यादा नहीं..."
  • इंदिरा अक्सर घंटों तक एक खुली कार में खड़े होकर लोगों को जागरुक करने के लिए कट्टरपंथी बयानबाज़ी करने वाली भीड़ को संबोधित करती थीं, लेकिन साथ ही उन्होंने उच्च वर्गों को आश्वस्त किया कि वह उनके हितों के बारे में भी ध्यान रखेंगी। नतीजतन, इंदिरा और उनके समर्थकों ने संसदीय चुनावों में विजय प्राप्त की।
  • 15 अगस्त, 1975 को लाल किले में दिए गए अपने भाषण में, इंदिरा ने चेतावनी दी, "कृपया जादुई उपाय और नाटकीय परिणाम की उम्मीद न करें, केवल एक ही जादू है जो गरीबी को दूर कर सकता है, और वह है स्पष्ट दृष्टिकोण से किया गया निरंतर कठिन परिश्रम, दृढ़ इच्छा और सख्त अनुशासन।"

बीस सूत्री कार्यक्रम

बीस सूत्री कार्यक्रम 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा शुरू किया गया था और बाद में 1982 और 1986 में फिर से इसका पुनर्गठन किया गया।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक रेडियो प्रसारण में, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और समाजवादी झुकाव वाले एक नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करने हेतु उपायों की घोषणा की। इन घोषणाओं में - आयकर की छूट की सीमा को 6000 रूपए से बढ़ाकर 8000 रूपए करना, तस्करों की स्वामित्व वाली सम्पत्तियों को जब्त करना, खाली जमीन के स्वामित्व और कब्जे की हदबंदी करना और अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण - शामिल थीं। भूमि हदबंदी कानून को सख्ती से लागू किया गया और अतिरिक्त भूमि ग्रामीण गरीबों के बीच वितरित की गयी। बीस सूत्री कार्यक्रम में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नीचे लाना, भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों और कारीगरों से कर्ज की वसूली पर रोक हेतु कानून लाना, सरकारी खर्च में कठोरता को बढ़ावा देना, बंधुआ मजदूरी पर कारवाई, ग्रामीण ऋणग्रस्तता को समाप्त करना आदि कदम शामिल थे।

उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम के बीस सूत्रों को सावधानी से बनाया और चुना गया। बीस सूत्री कार्यक्रम में शामिल थे :

1. ग्रामीण गरीबी पर हमला
2. वर्षा आधारित कृषि के लिए रणनीति
3. सिंचाई के पानी का बेहतर उपयोग
4. बड़ी फसलें
5. भूमि सुधार का प्रवर्तन
6. ग्रामीण श्रमिकों के लिए विशेष कार्यक्रम
7. स्वच्छ पीने का पानी
8. सभी के लिए स्वास्थ्य
9. दो बच्चे का आदर्श
10. शिक्षा में विस्तार
11. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए न्याय
12. महिलाओं के लिए समानता
13. महिलाओं के लिए नए अवसर
14. लोगों के लिए आवास
15. मलिन बस्तियों के लिए सुधार
16. वानिकी के लिए नई रणनीति
17. पर्यावरण संरक्षण
18. उपभोक्ता की समस्याएँ
19. गांवों के लिए ऊर्जा
20. एक जिम्मेदार प्रशासन