1959 में, इंदिरा गांधी को बेंगलुरु में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, 1978 में फिर से (1978-1984) नई दिल्ली में और 1984 में कलकत्ता में कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गईं।
इंदिरा ने अपने अध्यक्षीय उद्घाटन भाषण में एक लोकप्रिय हिन्दी गीत से पंक्तियाँ उद्धृत कीं:
“... हम हैं भारत की महिलाएं हमें फूल-कन्या के रूप में ना देखें हम आग की चिंगारी हैं ... “
इस कविता का इंदिरा द्वारा उपयोग बताता है कि जब कि वह भारत में लिंग भेद संबंधी भूमिकाओं के बारे में जानती थीं, उन्होंने स्वयं के लिए इसे कभी एक बाधा नहीं माना।
कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही उनका राजनीतिक जीवन चमकना शुरू हुआ। इंदिरा ने केरल की कम्युनिस्ट सरकार पर चीन के एजेंट होने का आरोप लगाया, और उन्हें डर था कि इससे हिंसा और अराजकता का माहौल पैदा हो सकता है। उनके पिता ने केरल में लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार को खारिज कर दिया था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला मौका था कि राज्य सरकार भंग हुई थी।
सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में कार्यकाल (1964-66)
सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में, इंदिरा ने टीवी और रेडियो दोनों को शिक्षाप्रद मिडिया माना। उन्होंने एक उर्दू सेवा, एक सामान्य विदेशी सेवा तथा प्रसारण की अवधि विस्तारित की और आकाशवाणी पर अधिक चर्चाओं को प्रोत्साहित किया। लेकिन सरकार के एक सदस्य के रूप में, इंदिरा ने अपने मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर के क्षेत्रों पर प्रभाव डाला।
उदाहरण के लिए, मार्च 1965 में मद्रास में भाषाई दंगे हुए। यह वो वर्ष था, जब संविधान ने अंग्रेजी की जगह हिंदी को भारत की राजभाषा निर्धारित किया था। तमिल भाषी दक्षिण भारत में शांति भंग हो गई, जहां कुछ हिंदी विरोधियों ने विरोध स्वरुप स्वयं को अग्नि के हवाले भी कर दिया। इंदिरा तुरंत विमान से मद्रास पहुंची जहां उन्होंने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया और शांति बहाल करने में योगदान दिया।
इंदिरा, अगस्त 1965 में कश्मीर में एक और संकट के बीच घिरी थीं। स्पष्ट तौर पर यह जानते हुए कि स्थिति अस्थिर है, वे 8 अगस्त को अवकाश हेतु श्रीनगर गईं, जल्द ही उन्होंने कश्मीर में नागरिक स्वयंसेवकों के रूप में बिखरे पाकिस्तानी सैनिकों के बारे में जाना जो श्रीनगर पर कब्जा करने के लिए दृढ़ संकल्पित थे और पाकिस्तान समर्थक विद्रोह को उकसाना चाहते थे। इंदिरा से अगली उड़ान द्वारा दिल्ली वापसी के लिए आग्रह किया गया लेकिन उन्होंने मना कर दिया। न केवल वे वहां रहीं; बल्कि जब दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया, वे विमान द्वारा सीमा तक पहुँचीं। प्रेस ने उनका 'बूढ़ी महिलाओं के कैबिनेट में एकमात्र आदमी' के रूप में अभिवादन किया। इंदिरा दिल्ली वापस लौट आईं और फिर जब सितंबर में युद्ध चर्म सीमा पर था, वे कश्मीर लौट आईं। उन्होंने श्रीनगर में एक बड़ी भीड़ को बताया, "हम हमलावर को हमारे क्षेत्र का एक इंच नहीं देंगे"। उन्होंने पंजाब सीमा के पास बमबारी वाले इलाकों का निरीक्षण किया और फिरोजपुर में सैन्य अस्पताल का दौरा किया, और फिर अबोहर, फाजिल्का, अंबाला, अमृतसर और गुरदासपुर का दौरा भी किया। संवाददाता की रिपोर्ट के मुताबिक, 'जहां भी वह जाती थी वहां श्रीमती गांधी को उत्साही भीड़ बधाई देती नजर आती थी'।