इंदिरा, आनंद भवन, इलाहाबाद के एक विशाल परिवार एस्टेट में अपनी माँ के साथ इकलौते बच्चे के रूप में पलीं बढीं। नवंबर, 1924 में उनका एक भाई भी पैदा हुआ जो दुर्भाग्य से जन्म के दो दिन बाद ही चल बसा ।
जब इंदिरा दो साल की थीं, उनके माता पिता मोहनदास करमचंद गांधी के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। नेहरू का घर अक्सर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल लोगों के लिए एक बैठक की जगह थी, जोकि एकमात्र बच्चे के लिए एक असामान्य माहौल बना। हालांकि इंदिरा को उनके परिवार ने बिगाड़ दिया था, उन्होंने अपने बचपन को 'असुरक्षित' बताया। इंदिरा चार वर्ष की थीं जब उनके दादा, मोतीलाल और पिता, जवाहरलाल को पहली बार जेल भेजा गया था।
कतरन 2: "जब अदालत में कार्रवाई चल रही थी इंदिरा मोतीलाल की गोद में बैठी थीं और जब दोनों को जेल ले जाया जा रहा था, गम में उनकी हालत अनियंत्रित थी और उन्हें उनके बिना घर लौटना था...कुछ समय बाद उनकी माँ को भी लगभग उतनी बार उनसे दूर ले जाया गया जितनी बार उनके पिता को, जिससे उनका दुःख और बढ़ गया।
कतरन 3: वह मुश्किल से चार वर्ष की थीं जब मोतीलाल और जवाहरलाल की सजा और गिरफ्तारी के बाद कुछ चल संपत्ति जब्त करने के लिए पुलिस उनके घर तक पहुंची। यह देखकर व्यथित नन्हीं इंदिरा छोटी मुट्ठी तान कर पुलिस इंस्पेक्टर की ओर घुमती हुई चिल्लाई, "आप उन्हें कहीं नहीं ले जा सकते हैं, ये सब हमारी चीजें हैं!"
कतरन 4: जब इंदिरा 5 साल की थीं, समस्त नेहरु परिवार ने अपने ब्रिटिश सामान- कपड़े, वस्त्र आदि जला दिए थे। बाद में उन्हें एक पारिवारिक मित्र ने याद दिलाया कि जो गुड़िया वे अपने सीने से लगाए घूमती हैं वो एक ब्रिटिश गुड़िया थी। कई दिनों तक वे एक आंतरिक कशमकश से जूझती रहीं कि क्या करना उचित है और उन्होंने आखिरकार अपनी प्रिय गुडिया को अग्नि को समर्पित कर दिया। इस घटना के बारे में बात करते हुए, इंदिरा ने कहा, "मुझे याद है कि मैंने क्या महसूस किया। मुझे लगा जैसे कि मैंने किसी की हत्या कर दी हो।"
जैसे जैसे इंदिरा बड़ी हुईं, उनके गुड़िया के खेल में भी उस समय का राजनीतिक परिदृश्य नजर आने लगा था। दिलचस्प बात यह है कि ये प्रदर्शनकारी गुड़ियां हमेशा ब्रिटिश अधिकारियों को भ्रम और उलझन में डाल कर जीता करती थीं। लेकिन इस तरह के खेल और कल्पनाओं की अवधि उल्लेखनीय रूप से संक्षिप्त थी। वे कुछ वास्तविक करने के लिए उत्सुक थीं। 1924 तक, महात्मा गांधी ने 'चरखा' विकसित कर लिया था। इंदिरा ने जल्द ही स्वयं का एक चरखा हासिल कर लिया और पूरी लग्न से मोटे धागे की कताई करने लगीं।
इंदिरा ने एक ‘बाल चरखा संघ’ भी बनाया, जहां छोटे बच्चे बुनाई और कताई सीखते थे। वास्तव में, ‘बाल चरखा संघ’ ‘गांधी चरखा संघ’ का बच्चों का एक भाग था।
जब वे बारह वर्ष की थीं तब उन्होंने छोटे बच्चों के लिए एक वानर सेना (शाब्दिक अर्थ- बंदरों की सेना) आंदोलन बनाया। सेना की उद्घाटन बैठक में एक हजार से अधिक लड़के और लड़कियां शामिल हुए। बड़ों को सेना पर हँसी आ रही थी, लेकिन वे इससे हतोत्साहित नहीं हुईं। समूह ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक छोटी लेकिन उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल दिनचर्या के काम में बड़ों की मदद की, बल्कि महत्वपूर्ण जानकारी के दूत के रूप में भी काम किया।
1930 के दशक के प्रारंभ में इंदिरा ने एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमें एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल के लिए योजनाओं को रेखांकित किया गया था, अपने पिता के घर से अपने स्कूल के बस्ते में रखकर कहीं पहुँचाया। उनके पिता का घर उस समय पुलिस की निगरानी में था और उन्होंने पुलिस को बताया कि उन्हें पहले से ही स्कूल के लिए देर हो चुकी है और अगर उसे और देर हुई तो उन्हें दंडित किया जाएगा।
मोतीलाल नेहरू ने उन्हें 1924 में सेंट सीसिलिया स्कूल, जोकि तीन ब्रिटिश स्पिंस्टर्स चलाते थे, में प्रवेश दिलवाया। वैसे तो सेंट सीसिलिया एक निजी स्कूल था सरकारी नहीं, लेकिन जवाहरलाल ने जब वहां सभी ब्रिटिश कर्मचारियों को देखा तो उन्हें लगा कि इंदिरा को वहां पढ़ाना कांग्रेस के विदेशी बहिष्कार आंदोलन का उल्लंघन होगा। इंदिरा को इसलिए स्कूल से निकाल लिया गया और उन्हें 1934 में मैट्रिक करने तक घर पर ही भारतीय शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जाता था।
1926 तक, कमला इतनी गंभीर रूप से बीमार हुई कि डॉक्टरों ने नेहरू परिवार को जिनेवा में विशेषज्ञों से परामर्श करने के लिए स्विट्जरलैंड जाने के लिए प्रोत्साहित किया | वहां पहुँचते ही, जवाहरलाल ने जिनेवा में इकोले इंटरनेशनेल में इंदिरा को दाखिला दिलवाया। आठ साल की इंदिरा ने स्वयं जिनेवा में यात्रा की और यहाँ उनमें एक स्वतंत्र भावना का विकास हुआ। अनेक अलग अलग स्कूलों में भाग लेने के साथ-साथ पेरिस, लंदन और बर्लिन के दौरे के कारण उन्हें अपनी दुनिया को विस्तृत करने का मौका मिला।
प्रत्येक सुबह, जवाहर उनके साथ स्कूल जाते थे और दोपहर में देर से लौटते हुए उन्हें घर लाते थे। जब सर्दियों की छुट्टियों में स्कूल बंद थे, इंदिरा ने अपने पिता के साथ स्की ढलानों पर स्की करना सीखा। शुरुआत में शर्म के कारण इससे पीछे हट गईं लेकिन जल्दी ही उन्होंने अपनी झिझक पर काबू पा लिया।
1927 में, परिवार भारत लौट आया। उसके बाद इंदिरा ने इलाहाबाद में सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल में प्रवेश ले लिया।
वह दिल्ली में मॉडर्न स्कूल, बैक्स में इकोले नौवेल्ले में और पूना और मुंबई में पीपल'स ऑन स्कूल में भी छात्र थीं।