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उनकी हत्या

उनकी हत्या के एक दिन पहले

  • इंदिरा गांधी ने 30 अक्टूबर 1984 को उड़ीसा के भुवनेश्वर में बीबीएसआर परेड ग्राउंड में अपना आखिरी भाषण दिया। उन्होंने कहा, "आज मैं यहां हूं, कल यहाँ न भी रहूँ। लेकिन राष्ट्रीय हित की देखभाल करने की जिम्मेदारी भारत के हर नागरिक के कंधे पर है। मैंने इसका अक्सर पहले भी उल्लेख किया है। कोई नहीं जानता कि मुझे मारने के लिए कितने प्रयास किए गए हैं, मुझे मारने के लिए लाठी का इस्तेमाल किया गया था। भुवनेश्वर में ही, मुझे ईंट मारी गई। उन्होंने हर संभव तरीके से मुझ पर हमला किया है। मुझे परवाह नहीं है कि मैं जीती हूं या मरती हूं। मैंने एक लंबा जीवन जिया है और मुझे गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में व्यतीत किया है। मुझे इस पर गर्व है और किसी बात पर नहीं। मैं अपनी आखिरी श्वास तक सेवा करती रहूंगी और अगर मैं मर भी गई, तो मैं कह सकती हूं कि मेरे खून की हर बूंद एक नए भारत का निर्माण करेगी और इसे मजबूत करेगी।"

उनकी हत्या के दिन

  • 31 अक्टूबर 1984 की सुबह, इंदिरा को आयरिश टेलीविजन के लिए ब्रिटिश अभिनेता और टेलीविज़न प्रस्तुतकर्ता, पीटर उस्तिनोव के साथ एक टेलीविजन साक्षात्कार के लिए तैयार रहना था। शाम को, उन्हें ब्रिटेन की राजकुमारी ऐनी, महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और राजकुमार फिलिप की बेटी, जो भारत की यात्रा पर थी, के सम्मान में एक रात्रिभोज की मेजबानी करनी थी। प्रधान मंत्री खाने की अतिथि सूची में कुछ बदलाव करना चाहती थीं और उन्होंने अपने लंबे समय के सहयोगी आर.के. धवन को इस संबंध में निर्देश दिए जिन्होंने उन्हें सावधानी से नोट किया।
  • एक पीली नारंगी साड़ी में, काले सैंडल और एक लाल कपड़े का बैग लेकर, इंदिरा 1, सफदरजंग रोड पर अपने घर से बाहर निकलकर साथ में ही स्थित 1, अकबर रोड पर अपने दफ्तर की और बढीं। टेलीविज़न साक्षात्कार आयोजित करने के लिए उस्तिनोव वहां प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके परिचर, हेड कांस्टेबल नारायण सिंह ने उन्हें सूरज से बचाने के लिए उनके ऊपर छतरी लगाई।
  • जब वह लॉन में चल रही थीं, उन्होंने चाय पिलाने वाले को एक चाय सेट ले जाते हुए देखा, जो साक्षात्कार के दौरान उस्तिनोव और श्रीमती गांधी के सामने रखा जाना था। उन्होंने उसे बताया कि ये वाला टी-सेट ठीक नहीं है, और उसे एक अन्य चाय के सेट को लाने का निर्देश दिया। फिर वह नीम और ओक के पेड़ों से घिरे करीब 20 मीटर के छोटे से सीमेंट वाले रास्ते पर चलीं, उनके घर और कार्यालय को अलग करने वाले गेट की ओर।
  • वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों को नमस्ते कहने के लिए उन्होंने अपने हाथ जोड़े। लगभग 9 बजकर 9 मिनट हुए थे जब उप-निरीक्षक बेअंत सिंह ने उनके पेट में गोलियों के तीन राउंड उतार दिए। उनके जमीन पर गिरने के बाद सतवंत सिंह ने अपनी स्टेनगन से तीस गोलियां चलाईं।
  • गोलियां चलाने के बाद दोनों ने अपने हथियार फेंक दिए और बेअंत सिंह ने कहा, "मुझे जो कुछ करना था मैंने किया। अब आपको जो करना है वो करें।"
  • अगले छह मिनट में, तर्सेम सिंह जमवाल और राम सरण, इंडो-तिब्बती सीमा पुलिस के सिपाहियों ने बेअंत सिंह को एक अलग कमरे में पकड़ा और मार डाला क्योंकि उसने कथित तौर पर कमरे में अधिकारियों पर बंदूक तानने की कोशिश की थी। सतवंत सिंह को श्रीमती गांधी के अन्य अंगरक्षकों द्वारा भागने की कोशिश में एक सहयोगी के साथ गिरफ्तार किया गया। सतवंत सिंह को 6 जनवरी, 1989 को कथित सहयोगी केहर सिंह के साथ फांसी दी गई थी।
  • कुछ ही सेकंड में, सोनिया गांधी गोलीबारी की आवाज सुनकर सफदरजंग रोड स्थित घर से बाहर निकल आईं। डॉ. आर ओपे, जो केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना के ड्यूटी पर डॉक्टर थे, और प्रधान मंत्री के घर पर तैनात थे, वहां पहुंचे लेकिन वहां तैनात एम्बुलेंस का चालक नहीं मिला। इसलिए उन्होंने उन्हें एक आधिकारिक कार में रखा और उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में ले गए। श्रीमती गांधी के पुत्र, राजीव, पश्चिम बंगाल के चुनाव दौरे पर कलकत्ता से 150 किमी के आसपास कोंटाई में थे। सोनिया गांधी गाड़ी में बैठीं, अपनी सास का सिर गोद में रखा।
  • इंदिरा गांधी को 9.30 बजे एम्स - नई दिल्ली लाया गया था, जहां डॉक्टरों ने अपना काम प्रारंभ किया। 2 बजकर 20 मिनट पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। हमलावरों ने उनपर 33 गोलियां चलायी थी, 30 उन्हें लगी; 23 उनके शरीर के पार चली गई जबकि 7 अंदर फंस गई। सीएफएसएल दिल्ली में गोलियां संबंधित हथियारों से मिलायी गई। उनका शरीर 1 नवंबर की सुबह एक बंदूक गाड़ी में दिल्ली की सड़कों से होते हुए तीन मूर्ति भवन में लाया गया जहां उनके पिता को रखा गया था और जहां वह कभी रहीं थी। 3 नवंबर को उनका अंतिम संस्कार राजघाट (महात्मा गांधी के स्मारक) के करीब किया गया तथा उस स्थल का नाम 'शक्ति स्थल' रखा गया। उनके बड़े बेटे (उस समय जीवित) और उत्तराधिकारी, राजीव गांधी ने उनका अंतिम संस्कार किया।

उनकी हत्या के बाद

  • दो दिनों के लिए जब उनके शरीर को तीन मूर्ति हाउस, जो कि जब जवाहरलाल नेहरू सत्ता में थे उनका घर था, में रखा गया था। हजारों देशवासियों ने उनको श्रद्धांजली अर्पित की।
  • अगले चार दिनों में, प्रतिशोधी हिंसा में हजारों सिख लोग मारे गए। उत्तर भारत में लगभग 8,000 सिखों की मृत्यु हुई, दिल्ली में 3,000 से ज्यादा लोग मारे गए।
  • इंदिरा गांधी के शरीर के फुटेज के साथ राष्ट्रीय टेलीविजन का एक सतत प्रसारण हुआ था, जो "ख़ून का बदला खून" चिल्लाती हुई भीड़ से घिरा हुआ था।
  • विश्व की प्रतिक्रिया तेज़ी से दो विषयों पर केंद्रित हुई - एक महिला, जिसने लंबे समय से अपने देश की अगुवाई की थी, की हत्या पर सदमा और दहशत।
  • वॉशिंगटन में, राष्ट्रपति रीगन, जिनको आधी रात को गोलियां चलने की खबर से जगाया गया, ने "क्रूर हत्या पर सदमा, घृणा और दुःख" व्यक्त किया।
  • राज्य के सचिव जॉर्ज शल्त्ज़ को अंतिम संस्कार के लिए अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए नामित किया गया था।
  • ब्रिटिश प्रधान मंत्री, मार्गरेट थैचर, जो नियमित रूप से टेलीफोन पर इंदिरा से बात किया करती थीं, ने घोषणा की, "भारत को अतुलनीय साहस, दृष्टि और मानवता के एक नेता से वंचित कर दिया गया है। मेरी और से, मैंने एक बुद्धिमान सहयोगी और एक निजी मित्र खो दिया।"
  • पोप जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि उनकी मृत्यु ने 'सार्वभौमिक आतंक और निराशा' को उकसाया।
  • मॉस्को, जिसके वर्षों से इंदिरा के साथ लगातार मैत्रीपूर्ण संबंध थे, में महासचिव कॉन्स्टेंटिन चेरनेको ने उन्हें "शांति के लिए एक तेजस्वी सेनानी" और "सोवियत संघ का एक महान दोस्त" बताते हुए उनकी प्रशंसा की।
  • इंदिरा की मौत की खबर के समय मास्को के अमेरिकी राजदूत आर्थर हार्टमैन सोवियत विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रोमीको के कार्यालय में बैठे हुए थे। हार्टमैन ने टिप्पणी की कि दोनों महाशक्तियों को भारत की स्थिति को शांत करने के लिए जो कर सकते हों, उन्हें करना चाहिए और ग्रोमीको ने सहमति व्यक्त की। कुछ ही घंटों के भीतर, सोवियत समाचार एजेंसी टी.ए.एस.एस. ने अमेरिकी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी का इस हत्या में हाथ बताया, बाद में रोनाल्ड रीगन ने इसे "एक घटिया निशाना" बताते हुए इस आरोप को खारिज कर दिया।